Monday, March 31, 2014

राजनीतिक दलों का चुनावी घोषणा पत्र एक छलावा है

राजनीतिक दलों का चुनावी घोषणा पत्र एक छलावा है

 

२०१४ के इस लोकसभा चुनाव में सबसे अहम् सवाल यही है कि- 'बड़े इजारेदार देशी-विदेशी कॉरपोरेट घराने जिसकी जमा अकूत पूंजी, कई देशों के सरकारी बजट और उसके सकल घरेलू उत्पादों से भी कई गुना ज्यादा है, को कैसे जब्त कर उस पूंजी को बुनियादी सुविधाएं मसलन 'शिक्षा स्वास्थय' और अन्य जन-कल्याण कार्यों पर खर्च किया जाय? आजादी पश्चात सन १९५०-६० के दसक तक देश में 60 ब्रिटिश विदेशी कंपनियां मौजूद थीं, जो १९९० के बाद 4000 से अधिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारतीय बाजारों में अपना पांव पसार चुकी है. और अब, खुदरा क्षेत्र में भी घुसने के लिए बेताब है. इन विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए 'कांग्रेस-भाजपा' की सरकारें लाल कालीन बिछाने को दीवानी हो गयी है जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में भ्रष्टाचार फैलाने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है.

 

देशी-विदेशी कार्पोरेट मीडिया प्रायोजित- 'नरेंद्र मोदी, जो इस समय प्रधानमन्त्री बनने का ख्वाब देख रहा है, की दंगाई पार्टी भाजपा के बारे में बात भी करना बेतूका सा लगता है, लोग कोई चर्चा भी करना नहीं चाहते जिसने पिछले दो सालों से तोता की तरह सुबह-शाम, रात-दिन, उठते-जागते एक ही रट लगाती चली रही है कि, चाहे लाख रूकावटें खड़ी की जा रही हो आडवाणी, जसवंत सिंह के द्वारा...मगर, भाजपा नरेंद्र मोदी को ही प्रधानमंत्री बनाने के प्रति कटिबद्ध है.

 

माकपा जो दुनिया की दूसरी, और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी कम्युनिष्ट पार्टी है, स्वाभाविक रूप से जनता की बड़ी उम्मीदें रही थी, ने सबसे पहले चुनावी घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा कि 'शिक्षा पर कुल सकल घरेलू उत्पाद का छह फीसद' खर्च करने पर जोर देगी. जबकि, भाकपा ने 'शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का दस फीसद' खर्च करने की बात कही है. भाकपा (माले) चूँकि सबसे छोटी कम्युनिष्ट पार्टी है, जाहिर है उसके चुनावी घोषणा पत्र से जनता की बहुत छोटी उम्मीदें है.

 

बहरहाल, घोटालेबाज कांग्रेस पर कौन भरोसा करेगा जो इंदिरा गांधी के समय से ही गरीबी हटाओ देश बचाओ का नारा लगाती आयी थी और मनमोहन-मोंटेक-चिदंबरम की तिकड़ी ने गरीबों की गरीबी मापने में ही धांधली करने की कोशिश की. महगाई को बेलगाम किया. अब इस चुनाव में सबको स्वास्थय, सबको घर देने के चुनावी घोषणा पत्र में कुल सकल घरेलू उत्पाद का स्वास्थय पर महज तीन प्रतिशत खर्च करने की बात कह रही है.

 

जनता के वास्तविक मुद्दे :     

 

1.  जोतने वाले (जोतदारों) को सीलिंग से फाजिल और बेनामी लाखों हेक्टेयर ज़मीन जिसे सामंतो-जमींदारों ने फर्जी कुत्ते-बिल्ली के नाम पर हथिया रखा है, को जब्त कर भूमिहीन खेतिहर मजदूरों (जिनमे बड़ी संख्या दलित-आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के लोग ही शामिल है) के बीच मुफ्त बांटा जाय.

2.  देश के हर बच्चे को वैज्ञानिक शिक्षा "मुफ्त अनिवार्य" मिले.

3.  सबको मुफ्त "स्वास्थय-चिकित्सा" उपलब्ध हो.

4.  सभी बेघरों को घर मिले.

5.  ठीकेदारी-प्रथा का अंत कर न्यूनतम मजदूरी १५००० रूपये प्रति माह की दर से स्थायी नौकरी, तथा ५००० रूपये प्रति माह पेंशन की व्यवस्था हो. 

6.   ऑपरेशन ग्रीनहंट के बहाने झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में महिलाओं के साथ पुलिसिया दुष्कर्म बंद हो और झारखंड में ही पचास (५००००) हजार  से ज्यादा आदिवासी नौजवानों को जिसे फर्जी मुक़दमे के तहत विभिन्न जेलों में सालों से बंद रखा गया है, को फ़ौरन रिहा किया जाय. फर्जी मुठभेड़ के बहाने आदिवासी बहुल गाँवों को तबाह होने से बचाया जाय.

7.  महिलाओं को उसकी आबादी का नौकरी के सभी क्षेत्रों समेत संसद-विधायिका में पचास फीसदी आरक्षण मिले.

 

वाम-जनवादी विचार मंच