Saturday, September 3, 2011

राजनैतिक, आर्थिक, संस्कृतिक मुद्दो और आम आदमी के सवालो पर सार्थक हस्तक्षेप Hastakshep.com

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मानवाधिकार हनन और लोकतंत्र का भविष्य

Posted: 03 Sep 2011 11:26 AM PDT

वक्ता- डा0 विनायक सेन, प्रशान्त राही, कविता श्रीवास्तव, रवि किरन जैन स्थान- बालमीकि रंगशाला, संगीत नाटक अकादमी, गोमती नगर (भारतीय रिजर्व बैंक के समीप) समय- 2 बजे से 5 बजे, दिनांक- 11 सितंबर 2011, दिन- रविवार मि़त्रों, राज्य द्वारा नागरिकों का मानवाधिकार हनन इस दौर के शासन व्यवस्था का पहचान बनता जा रहा है। आज [...]

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जोशीले युवाओं का होश से लबरेज आंदोलन

Posted: 03 Sep 2011 11:13 AM PDT

डाॅ0 आशीष वशिष्ठ अक्सर ये कहा जाता है कि युवा शक्ति के पास जोश तो होता है, लेकिन होश नहीं। लेकिन दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के साथ देश के कोने-कोने से आये युवाओं ने जोश के साथ जिस होश का परिचय दिया है, वो वाकया ही काबिले तारीफ है। अन्ना के आंदोलन [...]

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एक दिन सम्मान, साल भर अपमान!

Posted: 03 Sep 2011 10:58 AM PDT

-राजेन्द्र राठौर (5 सितम्बर शिक्षक दिवस पर विशेष) भारत देश में शिक्षक दिवस के मौके पर केन्द्र व राज्य सरकारें बेहतर अध्यापन के लिए कई शिक्षकों का सम्मान करती है, ताकि शिक्षक और भी अच्छे ढंग से बच्चों को ज्ञान प्रदान कर सकें, लेकिन दुर्भाय है कि उस सम्मान को पाने के लिए शिक्षकों को [...]

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लक्ष्मणेश्वर की नगरी खरौद में सरस्वती पुत्रों की खान

Posted: 03 Sep 2011 10:45 AM PDT

राजकुमार साहू शिक्षक दिवस, 5 सितंबर पर विशेष - - पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही शिक्षक बनने की परिपाटी - बरसों से शिक्षा का केन्द्र रहा है खरौद - 'ज्ञान बांटने से बढ़ता है', यही है मूलमंत्र - छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में है खरौद   पत्थरों की खदान के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मणेश्वर [...]

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अन्ना जी को मसीहा बनने की जल्दी पडी है

Posted: 03 Sep 2011 10:24 AM PDT

अन्ना आंदोलन: एक आलोचनात्मक विश्लेषण -डाॅ. असगर अली इंजीनियर अन्ना हजारे के अनशन के विरोध और समर्थन में बहुत कुछ लिखा जा चुका है-विरोध में कम और समर्थन में ज्यादा। फिर, एक और लेख की क्या जरूरत है? हर लेखक का अपना एक दृष्टिकोण होता है और मेरा भी है। हर लेख कुछ ऐसे नए [...]

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अन्नाइयों को दोस्त और दुश्मन की पहचान नहीं है

Posted: 03 Sep 2011 02:26 AM PDT

आदरणीय  प्रशांत भूषण जी सादर नमस्ते     अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी के नेतृत्व में जन लोकपाल कानून बनाने के लिए राष्ट्र व्यापी आन्दोलन के आगे संसद और सरकार को  झुकना पड़ा  | कोई कानून बनवाने के लिए जनता का सड़क पर बड़ी संख्या में निकल आना बेमिसाल घटना है | लोकतंत्र में जनता की  [...]

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देश प्रेम आज एक मार्केटेबुल चीज बन गयी है : प्रशांत राही

Posted: 03 Sep 2011 02:06 AM PDT

सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता और जनपक्षीय पत्रकार प्रशांत राही को पौने चार साल जेल मंे रहने के बाद उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने जमानत पर 21 अगस्त को रिहा कर दिया। राही को 17 दिसंबर 2007 को पुलिस ने देहरादून से उठाकर उनकी गिरफ्तारी 22 दिसंबर 2007 को हंसपुर खत्ता के जंगलों से दिखायी। राही ने [...]

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व्यंग्य- थोड़ी सी जो पी ली हैं

Posted: 02 Sep 2011 08:23 PM PDT

प्रमोद ताम्बट हलक में शराब के दो घूँट उतरने के बाद इंसान की ज़ुबान बे-लगाम हो जाती है यह तो पता था, मगर असह्य बदबू का वास होने के बावजूद भी मुँह में उसके सरस्वती आ बिराजती होंगी नहीं पता था। फिल्म अभिनेता ओम पुरी ने अन्ना के मंच से शराब के नशे में धुत्त [...]

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