राजनैतिक, आर्थिक, संस्कृतिक मुद्दो और आम आदमी के सवालो पर सार्थक हस्तक्षेप Hastakshep.com | |
- तिहाड का ‘अमर’ रास्ता
- अन्ना ने आसान कर दी मायावती की राह
- अजीब दौर है, भ्रष्टाचारी माँ के दुलारे बेटे उसकी सौत ईमानदारी के पक्ष में नारे लगा रहे हैं
- एक आत्महत्या की मौत
- हम सब सुरक्षित हैं, यह वहम सा क्यूँ है ?
- लोक की कमाई तंत्र बनाने में गंवाई
- Training Programme on Peace and Conflict Resolution
- संगठित वर्ग का बंधक बनता असंगठित समाज
- दुराग्रही दौर की सत्याग्रही
- चैनलों पर ‘अगस्त क्रांति’
| Posted: 07 Sep 2011 07:26 PM PDT पुण्य प्रसून बाजपेयी सरकार मनमोहन सिंह की बची। सरकार बचाने का इशारा मुलायम सिंह ने किया। लेकिन आज न तो कांग्रेस का हाथ है और न ही मुलायम सिंह का साथ। फिर भी अमर सिंह खामोश रहे और खामोशी से तिहाड़ जेल पहुंच गये। यह फितरत अमर सिंह की कभी रही नहीं। तो फिर वह [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| अन्ना ने आसान कर दी मायावती की राह Posted: 07 Sep 2011 10:03 AM PDT डाॅ0 आशीष वशिष्ठ यूपी में राहुल के गुप-चुप दौरों और सक्रियता से बैचेन और घबराई मायावती ने राहुल के कदमों में बेड़ी डालने और मिशन 2012 में अड़ंगे लगाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन लाख कोशिशों और साजिशों के बाद भी मायावती को वांछित सफलता नहीं मिल पायी थी। भट्ठा पारसौल [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| अजीब दौर है, भ्रष्टाचारी माँ के दुलारे बेटे उसकी सौत ईमानदारी के पक्ष में नारे लगा रहे हैं Posted: 07 Sep 2011 08:37 AM PDT अंजुले श्याम मौर्य इनकलाब जिंदाबाद… वन्दे मातरम… भारत माता की जय… अजीब दौर है… या फिर… दौरे हैं. जो नारे साल में एक दो बार ही नज़र आते हैं. आज़ादी या लोकतंत्र नामक त्यौहार के उत्सव मनाने के दिन और उसके बाद तारीख नाम के फटे बोरे में भर कर स्टोर रूम में रख [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| Posted: 07 Sep 2011 08:15 AM PDT जुगनू शारदेय एक खबर बिहार के औरंगाबाद जिला के गांव भतन बिगहा में 20 अगस्त को जनमती है । यह कहना मुश्किल है कि खबर 20 अगस्त को ही जन्मी लेकिन 23 अगस्त को मर जाती है । यूं किसी परिवार का आत्महत्या कर मर जाना भी तो कोई खबर भी नहीं है । कभी [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| हम सब सुरक्षित हैं, यह वहम सा क्यूँ है ? Posted: 07 Sep 2011 07:49 AM PDT विजय पाटनी आज मेरा गम, तेरे गम सा क्यूँ है ? हम सब सुरक्षित हैं, यह वहम सा क्यूँ है ? जख्म बन चुका है नासूर पर वो ही पुराना मरहम सा क्यूँ है ? बेकसूरों को मुआवजा , जान की कीमत ? और खूनी को बिरयानी, दामाद सी आवभगत इस देश में ऐसा, नियम [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| लोक की कमाई तंत्र बनाने में गंवाई Posted: 07 Sep 2011 01:16 AM PDT 0-चुनावी सिस्टम में झोल: आजादी के बाद पोल के बोल में बह गई दौलत अनमोल- नेताओं ने नहीं अदा किए रोल-पूरे नहीं हुए गोल-करप्शन के और तेज बजने लगे ढोल 0-देश में हर तरह के चुनाव पर अब तक कितना सरकारी धन यानि जनता की कमाई खर्च हुई, इसका कोई रिकार्ड सरकारी सिस्टम के पास [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| Training Programme on Peace and Conflict Resolution Posted: 06 Sep 2011 08:46 PM PDT Violent communal, caste and other identity driven conflicts are increasingly being used as a tool to impose North Indian, upper caste patriarchal hegemony. The conflict on issues related to ethnicity, language, culture and religion abound and mar the process of social and economic development of society. Country is witness to the outbursts of violence [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| संगठित वर्ग का बंधक बनता असंगठित समाज Posted: 06 Sep 2011 08:37 PM PDT निर्मल रानी इसमें कोई संदेह नहीं है कि संगठन बनाना या समाज का संगठित होना उसकी शक्ति का परिचायक होता है। परंतु जब यही संगठन रचनात्मक अथवा सकारात्मक कार्यों में आगे आने के बजाए विध्वंसात्मक,हानिकारक अथवा कष्टदायक गतिविधियों में सक्रिय हो उठे ऐसे में इसका भुगतान निश्चित रूप से असंगठित समाज तथा साथ- साथ [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| Posted: 06 Sep 2011 08:19 PM PDT प्रेम प्रकाश मौजूदा दौर के कसीदे पढ़ने वाले कम नहीं। यह और बात है कि ये प्रायोजित कसीदाकार वही हैं, जिन्हें हमारे देशकाल ने कभी अपना प्रवक्ता नहीं माना। दरअसल, चरम भोग के परम दौर में मनुष्य की निजता को स्वच्छंदता में रातोंरात जिस तरह बदला, उसने समय और समाज की एक क्रूर व [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
| Posted: 06 Sep 2011 07:50 PM PDT आनंद प्रधान संतुलन चैनलों की डिक्शनरी में नहीं है ऐसा लग रहा था, जैसे देश दिल्ली के रामलीला मैदान में सिमट गया हो. यह न्यूज चैनलों पर अन्ना हजारे की 'अगस्त क्रांति' की नान स्टाप 24×7 लाइव कवरेज थी. बिना किसी अपवाद के सभी चैनलों पर सिर्फ अन्ना और अन्ना छाए हुए थे. बेशक, चैनलों [...] पूरा आलेख पढने के लिए देखें एवं अपनी प्रतिक्रिया भी दें http://hastakshep.com/ |
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