Wednesday, May 23, 2012

राजनैतिक, आर्थिक, संस्कृतिक मुद्दो और आम आदमी के सवालो पर सार्थक हस्तक्षेप Hastakshep.com

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लाशों पर बनते महल और सरकार का जश्न

Posted: 23 May 2012 08:35 AM PDT

संजय शर्मा यूपीए सरकार के तीन साल पूरे हो गए। प्रधानमंत्री बहुत खुश थे। सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के बाकी नेता भी कम फूले नहीं समा रहे थे। केन्द्र की उपलब्धियों का बखान करते हुए एक किताब भी प्रकाशित की गई। इसमें सरकार का गुणगान किया गया था। लब्बो लुआब यह कि सभी मान रहे [...]

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Consultation on Draft National Early Childhood Care and Education Policy

Posted: 23 May 2012 06:46 AM PDT

Invitation to the Consultation on Draft National Early Childhood Care and Education (ECCE) Policy on May 28, 2012  Dear Friends, RTE Forum is organizing a consultation on "Draft National Early Childhood Care and Education (ECCE) Policy" on May 28, 2012 (Monday) at 3:00pm. A draft National policy has been developed by Ministry of Women and [...]

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नेहरू और आंबेडकर, के अनुयाइयों ने अपने ‘नायकों’ को न समझा है, न उनसे कुछ सीखा है, भुगतेगा देश

Posted: 23 May 2012 05:43 AM PDT

मोहन श्रोत्रिय कार्टूनों को लेकर असहिष्णुता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. पहले ममता बनर्जी बिफरीं, और अब बाबा साहेब आंबेडकर के कार्टून को लेकर संसद में बवाल मचा, संसद के बाहर भी. कहां गए वे दिन नेहरू युग के, जब कार्टूनिस्टों की नज़र का बेहद सम्मान हुआ करता था. मुझे लगता है कार्टूनिस्टों की रचनात्मक [...]

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कांग्रेस को एक सुर में कहना होगा हमारे पास मां है

Posted: 23 May 2012 01:00 AM PDT

यूपीए-2 में कौन मुस्कुरा रहा है पुण्य प्रसून बाजपेयी मेरे पास मनमोहन सिंह हैं। यूपीए -2 की शुरुआत सोनिया गांधी के इसी संकेत से हुई थी । जब उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र में अपनी तस्वीर अपनी हथेली से ढककर सिर्फ मनमोहन सिंह की तस्वीर दिखायी थी। यानी 2004 में मेरे पास मां है का डायलाग [...]

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एक लेखक के रूप में गांधी प्रभावित नहीं करते

Posted: 22 May 2012 10:02 PM PDT

मनोविज्ञान  एवं मानसिक स्वास्थ्य  की पत्रिका ‘मनोवेद’ के लिए कुमार मुकुल ने मेरे सामने कुछ सवाल रखे थे. उन्हीं सवालों पर आधारित यह लिखित बातचीत है—  डाॅ राजू रंजन प्रसाद क्या आप ईश्वर को मानते हैं ? धर्म को लेकर आपका नजरिया क्या है?   जब से मैंने होश संभाला है, धर्म और ईश्वर के [...]

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जाति को अपने अन्दर समेट लूं और झुला दूं इसे अपने मुक्ति-परचम की तरह

Posted: 22 May 2012 08:00 PM PDT

गुरिंदर आज़ाद  की दो कविताएं मैं जातिवादी हूँ !   आज भी मेरी स्मृतियों के माथे पर झूलता है दलित दंश पेंडूलम की तरह ! है उतनी ही पुरानी जुम्बिश इसकी  जितनी पुरानी मेरे पुरखों की खोये से हुए मुकम्मल राहत के किसी क्षण की तलाश जिसकी हसरत  मेरे पैरों में बंधी है आज भी [...]

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