Tuesday, January 21, 2014

दिल्ली 2014 का भारतीय तहरीर चौक बनने जा रहा है

दिल्ली 2014 का भारतीय तहरीर चौक बनने जा रहा है

 

क्रांति सतत चलने वाली प्रक्रिया है और असली विद्रोही वह है जो छह महीने बाद अपनी कुर्सी ख़ुद उलट दे. ये दोनों ही बातें अभी दिल्ली में घटित होती हुई दिखाई दे रही हैं. आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार के मुखिया 'केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत' का नेतृत्व कर रहे हैं. दिल्ली में रेल भवन के पास दिल्ली की पूरी सरकार अब अपने समर्थकों के साथ दस दिनों के धरने पर बैठ गए हैं. दिल्ली में आम आदमी पार्टी इसलिए पैदा हुई कि भारत में जनता से राजनीति का संवाद टूट गया है. दिल्ली की सड़क पर जो अराजकता दिखाई दे रही है, जिसके नतीजे ख़तरनाक भी हो सकते हैं, उसके लिए भाजपा-कांग्रेस बराबर की दोषी है. घोटालेबाज, अकर्मण्य, महगाईबाज कांग्रेस से जनता का लगातार मोहभंग होता देखकर भाजपा ने देश में भावनात्मक उत्तेजना फैलाकर 'साम्प्रदायिक आंधी' पैदा करने के लिए 'भगवा घोड़ा लेकर शातिर मोदी को चुनावी मैदाने जंग में उतार दिया. यह दकियानूसी समझ थी कि समाज की निम्नतम प्रवृत्तियों को उकसा कर उन्हीं के बल पर ताक़त हासिल करना, दूसरों को बेइज़्ज़त करने की प्रवृत्ति, फ़ौरन सज़ा देने, यहाँ तक कि विरोधियों के खिलाफ संगठित हिंसा को बढ़ावा देने की रही जैसा कि हालिया मुजफ्फरनगर दंगे में देखा भी जा सकता है. आम तौर पे गाली गलौज की जुबान को सामान्य बना कर हिंसक वृत्ति से खुद को संतुष्ट करना, पूंजीपतियों की सेवा में दिन-रात कालीन बिछाते रहना...जैसा कि मोदी ने गुजरात में बड़े-बड़े देशी-विदेशी पूंजीपतियों का आवभगत करके दिखाया था. आमजनो तक अपनी पहुँच के लिए उनके जात-धर्म-गोत्र-मूत्र तक की बात की जाती है. इसी कड़ी में 'नरेन्द्र मोदी खुद को चाय बेचने वाला बताते फिर रहा है. यह रट्टा लगाने से पहले उसे मालूम होगा कि फासीवादी मुसोलिनी भी एक लुहार का बेटा था, जो बचपन में लुहारी के काम में अपने पिता की मदद करता था और हिटलर भी पहले घरों में रंगाई-पुताई का काम करता था. चाय बेचने की पृष्ठभूमि वाले फासीवादी नरेन्द्र मोदी के पुराने यारों की पृष्ठभूमि कोई हावर्ड या कैंब्रिज में तालीम हासिल करने वालों की नहीं रही थी.

 

बहरहाल, इससे आम जनता में लोकतांत्रिक राजनीति के प्रति उदासीनता पैदा हुई है. उस शून्य को आम आदमी पार्टी ने भरने का दावा किया है.यह एक नया वाम है जो इस व्यवस्था को पूरी तरह से उलट कर रख देने को आया है.

 

कुछ लोगों का दावा है कि यह आम आदमी पार्टी एक तरह से शहरी गुरिल्ला दल है जो अपनी रणनीति अपने कार्यकर्ताओं के साथ खुली जगह में बैठकर बनाते है. यह आम आदमी पार्टी भारतीय समाज और राजनीति की सड़ांध से ही पैदा हुई है जिसे भाजपा-कांग्रेस ने मिलकर बनाया है. इस तरह के आन्दोलन हमेशा देशभक्ति की आड़ में जनवादी या समाजवादी भाषा का उपयोग करते हुए कुछ फासीवादी बौद्धिक कलम घिस्सुओं द्वारा भी चलाए जाते है जिनकी अंतर्वस्तु अनियंत्रित सत्ता हासिल करने की होती है.

 

यह सच है कि देश में नेताओं को एसी कमरों में रहने और लालबत्ती लगी एसी गाड़ियों में घूमने की आदत सी लग गई है और एक बार चुने जाने के बाद फिर वो पांच साल बाद ही नज़र आते हैं. दूसरी तरफ इनकी निकम्मी निष्ठुर पुलिस से आम लोगों की आस्था कम होने की वजह से यही आम लोग सड़कों पर उतरने को बाध्य होते है. आम आदमी की हालत ये है कि यदि उसे अपनी कोई शिकायत लिखानी है तो इससे पहले उसे थाने में शर्मसार होना पड़ता है, बिना शर्मिन्दगी झेले कोई आम इंसान पुलिस के पास जा ही नहीं सकता है.चुनी हुई सरकार के प्रति पुलिस को जबावदेह होना पड़ेगा और इसी तरह पुलिस को आम लोगों के प्रति संवेदनशील भी बनना होगा. आज सिर्फ़ भ्रष्ट, निकम्मी, निष्ठुर पुलिस अधिकारियों को निलंबित किये जाने से बात नहीं बनने वाली, बल्कि पूरे तंत्र में आमूलचूल बदलाव करने की ज़रूरत है. आज सचमुच में भारत की इस राजनीतिक संस्कृति को बदलने की ज़रूरत है.

 

वाम-जनवादी विचार मंच

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