अबकी 'गणतंत्र दिवस' रामलीला मैदान में मनाओ!
इस साल 'हाथी-घोड़ा-ऊंट-बकरी-मुर्गा-गधा' लेकर 26 जनवरी को 'गणतंत्र दिवस' रामलीला मैदान में मनाओ, क्योंकि दिल्ली की आम जनता राजपथ को भर देना चाहती है. आखिर आम जनता के लिए इस गणतंत्र दिवस का क्या मतलब है जहां कोलकाता हो या दिल्ली 'महिलायें कहीं भी आज सुरक्षित ही नहीं है.' थाना प्रभारी से लेकर जिला व अनुमंडल अधिकारी तक जब अपनी पोस्टिंग के लिए मंत्री-संत्री को पैसे देते हैं तब ऐसे में अधिकारियों का सिर्फ तनख्वाह पर जीवित रहना नामुमकिन है. पुलिस अधिकारियों द्वारा मोटी रकम जुटाने में वह बड़े-छोटे अपराधियों से सांठगाठ कर लेते है. तब महिलायें भला कैसे सुरक्षित रह सकती है? महिलाओं, बच्चियों के संग दुष्कर्म जारी है. उन्हें आग में ज़िंदा जलाकर मार दिया जा रहा है. फिर मंत्री-संत्री बैठकर चैन से कैसे सो सकते है?
साफ़-सफाई का काम राष्ट्रपति भवन से शुरू हो
देश की जनता आगामी २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति से उम्मीद रखती है कि ३४० कमरे वाला विशाल रिहाइशी राष्ट्रपति भवन (किला) को 'राष्ट्रीय म्युसियम' घोषित किया जाय और महामहिम अपने परिवार के सदस्यों के साथ तीन कमरे वाले कमरे में शिफ्ट करने की घोषणा करें. इससे सफ़ेद कुर्ता-पायजामा छाप (स्कूल ड्रेस) कथित राजनेताओं को भी ऐसा ही अनुकरण करने को बाध्य किया जा सकेगा.
भाजपा: अरे बेशर्मो, कुछ तो शर्म करो!
भाजपा शासित जिस छत्तीसगढ़ में लाखों लोगों के सिर पर छत नहीं हो, वहां एक अकेले मुख्यमंत्री और उनके परिवार के लिये 81 करोड़ का घर बनाना भ्रष्टाचार का एक बेशर्म बेहूदा नमूना है. सिर्फ सफ़ेद खादी-कुर्ता पहनने से कोई गांधी नहीं बन जाता.
त्रिपुरा के माणिक सरकार आज भी रिक्शा से विधानसभा जाते है. पूर्व मुख्यमंत्री नृपेन चक्रवर्ती के पास कुल पूंजी-'दो धोती, दो कुर्ता, एक तौलिया, और एक हैण्ड बैग हुआ करता था और रहने के लिए पार्टी का दफ्तर. नृपेन चक्रवर्ती अपना खाना खुद पकाते और अपना कपड़ा खुद धोते थे. उनके अपने काम में सहायता के लिए कोई चपरासी या नौकर नहीं हुआ करता था.
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की बेटी पब्लिक बस से स्कूल जाया करती थी. माकपा के पूर्व महासचिव और पूर्व संसद सदस्य (दिवंगत) ए. के. गोपालन 'पार्टी दफ्तर' से सायकिल चलाकर संसद जाया करते थे. ये कुछ ऐसी मिसालें है जिसे दिल्ली में नयी-नवेली 'आप' सरकार आजकल उदाहरण पेश करने की कोशिश कर रही है. मगर, बेशर्म भाजपा को जनता की गाढ़ी कमाई उड़ाने में शर्म फिर भी आती कहाँ है?
विश्व के 85 रईस साहबजादों के पास दुनिया की करीब आधी संपत्ति जमा है क्यों?
शासकगुट पूंजीपति-जमींदार-राजनीतिज्ञ-नौकरशाह-माफिया-ठीकेदार-अपराधी समूह के धन दौलत, उनकी पूंजी बेताहाशा ढंग से बढ़ती ही चली जा रही है. यही कारण है कि समाज में आर्थिक असमानता पहले से कहीं और ज्यादा खतरनाक तरीके से चौड़ा होता चला जा रहा है. एक तरफ, पूंजी का केन्द्रीयकरण हो रहा है वहीँ दूसरी तरफ, बढ़ती महगाई से आम जनता के क्रयशक्ति का ह्रास हो रहा है जिसके चलते खुले बाजार में मांग में संकुचन आया है जो सीधे तौर पे आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार है. हमें 'मजदूर व अन्य मेहनतकश अवाम के शोषण' पर आधारित सामंती-पूंजीवादी व्यवस्था को इस स्थिति को बदलना ही होगा. जैसा कि लेनिन ने ठीक ही कहा है कि, मज़दूरों का आर्थिक उत्पीड़न अनिवार्यतः हर प्रकार के राजनीतिक उत्पीड़न और सामाजिक अपमान को जन्म देता है तथा आम जनता के आत्मिक और नैतिक जीवन को निम्न श्रेणी का और अन्धकारपूर्ण बनाना आवश्यक बना देता है. मज़दूर अपनी आर्थिक मुक्ति के संघर्ष के लिए न्यूनाधिक राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन जब तक पूँजी की सत्ता का उन्मूलन नहीं कर दिया जाता तब तक स्वतंत्रता की कोई भी मात्रा उन्हें दैन्य, बेकारी और उत्पीड़न से मुक्त नहीं कर सकती.
धर्म बौद्धिक शोषण का एक रूप है जो हर जगह अवाम पर, जो दूसरों के लिए निरन्तर काम करने, अभाव और एकांतिकता से पहले से ही संत्रस्त रहते हैं, और भी बड़ा बोझ डाल देता है. शोषकों के विरुद्ध संघर्ष में शोषित वर्गों की निष्क्रियता मृत्यु के बाद अधिक सुखद जीवन में उनके विश्वास को अनिवार्य रूप से उसी प्रकार बल पहुँचाती है जिस प्रकार प्रकृति से संघर्ष में असभ्य जातियों की लाचारी देव, दानव, चमत्कार और ऐसी ही अन्य चीजों में विश्वास को जन्म देती है. जो लोग जीवन भर मशक्कत करते और अभावों में जीवन व्यतीत करते हैं, उन्हें धर्म इहलौकिक जीवन में विनम्र होने और धैर्य रखने की तथा परलोक सुख की आशा से सान्त्चना प्राप्त करने की शिक्षा देता है. लेकिन जो लोग दूसरों के श्रम पर जीवित रहते हैं उन्हें धर्म इहजीवन में दयालुता का व्यवहार करने की शिक्षा देता है, इस प्रकार उन्हें शोषक के रूप में अपने संपूर्ण अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने का एक सस्ता नुस्ख़ा बता देता है और स्वर्ग में सुख का टिकट सस्ते दामों दे देता है. धर्म जनता के लिए अफीम है ऐसा मार्क्स ने भी कहा है. . धर्म एक प्रकार की आत्मिक शराब है जिसमें पूँजी के ग़ुलाम अपनी मानव प्रतिमा को, अपने थोड़े बहुत मानवोचित जीवन की माँग को, डुबा देते हैं. भाजपा निर्वस्त्र होकर बड़े ही बेशर्मी व निर्लज्ज्ता के साथ से धार्मिक वेश्यावृत्ति कर रही है.
वाम-जनवादी विचार मंच
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