Tuesday, February 25, 2014

फ़र्स्ट फ़्रंट "वैकल्पिक नीतियों" के आधार पर काम करे

फ़र्स्ट फ़्रंट "वैकल्पिक नीतियों" के आधार पर काम करे

 

पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से 'हिंदुत्व आधारित सांप्रदायिकता' आक्रामक तरीके से देश के सामने चुनौती पेश करता चला रहा है. भाजपा-आरएसएस के खिलाफ देश में प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतों का व्यापक और मजबूत गठजोड़ समय की मांग थी. कल यानि मंगलवार के दिन देश के वामदलों समेत 11 प्रमुख राजनीतिक दलों ने नई दिल्ली में एकजुट होकर 'साम्प्रदायिक-फासीवादी भ्रष्ट भारतीय जनता पार्टी' को सत्ता में आने से रोकने, 'कांग्रेस के नेतृत्व वाली भ्रष्ट संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार' को सत्ता से बाहर करने, तथा उसकी जगह "वैकल्पिक नीतियों" के आधार पर 'फ़र्स्ट फ़्रंट' बनाने का दावा पेश कर दिया है. संप्रग के प्रमुख सहयोगी राकपा ने भी इस पहल का स्वागत किया है और आने वाले दिनों में विभाजित आंध्र-प्रदेश से टीडीपी और दुसरे अन्य दलों के भी जुड़ने की ख़बरें सकती है. इसके अलावा, इन दलों ने चुनाव पूर्व संयुक्त रैलियां करने का भी ऐलान किया है. इस नए 'सकारात्मक राजनीतिक घटनाक्रम' से धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकत्रित करने और 'वैकल्पिक योजनाओं' के आधार पर केंद्र में अगली सरकार का गठन करने का मार्ग प्रशस्त होगा.

 

इसमें दो राय नहीं कि वामपंथी दल ही इसकी असली धुरी है जो देश के विभिन्न क्षेत्रीय दलों के साथ कड़ी जोड़ने का काम कर रहे है. अलबत्ता, यह एक चुनौतीपूर्ण किन्तु; बेहद संतोषजनक राजनीतिक घटना विकास ही है जिसकी नींव पिछले साल तालकटोरा स्टेडियम में १४ दलों के साझे "साम्प्रदायिकता विरोधी सम्मलेन" के दौरान ही रख दी गयी थी. हमें पूरा विश्वास है कि देश की बहुमत शान्तिप्रिय जनता का 'फ़र्स्ट फ़्रंट' को समर्थन हासिल होगा.

 

जाहिर है, देश के करोड़ों मेहनतकश अवाम की आशाओं और उसकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए लम्बे समय बाद ही सही किन्तु; वामदलों को एकबार फिर से जाति, धर्म और भारत के अंदर सामाजिक उत्पीड़न के मुद्दों को ठीक ढंग से उठाने का अवसर प्राप्त हुआ है. वामदलों को वर्गीय आधारित शोषण के खिलाफ, पितृसत्ता और लिंग आधारित (जेंडर) मुद्दों को भी निर्णायक तरीके से 'फ़र्स्ट फ़्रंट' के जरिये बुलंद करनी होगी. 

 

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रफुल्ल बिदवई ने ठीक ही कहा है: 'वामदलों' को उपरोक्त चीजों के अलावा 'पारिस्थितिकी के मुद्दे; प्रकृति, समाज, उत्पादन और खपत के आपसी संबंधों पर भी कोई ठोस मॉडल विकसित करने होंगे जो सामाजिक तौर पर न्यायसंगत, जलवायु के अनुकूल और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ साबित हो सके. वामपंथी दल को अपनी वैचारिक स्थिति और नीतियों में समय के हिसाब से बदलाव लाने होंगे, उन्हें जमीनी स्तर पर संघर्ष से जुड़ने होंगे और नई राजनीतिक रणनीति बनाने होंगे तभी जाकर कोई ठोस विकल्प भविष्य के गर्भ से निकल सकेगा. 

 

भारतीय लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक मजबूती प्रदान करने में "राजनीतिक अवसरवाद" ही सबसे बड़ी बाधा खड़ी कर रहा है. "आवारा पूंजी" "आवारा मीडिया" के सहयोग से "आवारा  राजनीतिक माफिया" पैदा किये जा रहे है जिनकी बुनियाद अक्सर 'जाति धर्म' पर टिका होता है. इसका ताजा उदाहरण है- रामविलास पासवान का हनुमानी चुदुर-बुदुर, उदितराज के       कथित जस्टिस पार्टी का भाजपा में विलय, और उपेन्द्र कुशवाहा का भाजपा के साथ मेलजोल.

 

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा अध्यक्ष ने मुसलमानों को एक अवसर देने का आग्रह करते हुए कथितरूप से माफी मांगने का ढोंग किया है. हमलोग अभी भूले नहीं है कि किस बेशर्मी के साथ भाजपा के नरेंद्र मोदी ने  गुजरात दंगे के बाद गौरव-यात्रा निकाला था. और अभी-अभी हाल ही में हुए मुजफ्फरनगर के दंगे के बाद उसी नरेंद्र मोदी की आगरा के सभा में भाजपा  ने दंगाईयों को सम्मानित किया. इसलिए भाजपा और नरेंद्र मोदी पर विशवास करने का मतलब होगा खुद के ऊपर अविश्वास करना. यह पिंजड़े में बंद एक ऐसे शेर की घड़ियाली नौटंकी है जो  हमला करने की कसम खाकर पिंजड़े का ताला खोलने का आग्रह तो करता है मगर ताला खुलते ही हमलावर हो जाता है. भाजपा अध्यक्ष भी आजकल नए-नए तरीके अपनाकर कभी गलती के लिए माफी मांगने और सिर झुकाने की बात करता है तो कभी आँखें दिखाता है.

 

वामदलों अन्य धर्म-निरपेक्ष दलों को राजस्थान, मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, और उत्तराखंड में "युद्ध-काल" की रणनीति बनानी चाहिए. ताकि 'शैतान भाजपा' को उसी की सरजमीं पर पटखनी दिया जा सके.' कांग्रेस अगर साम्प्रदायिक-शक्तियों से दो-दो हाथ करने में सचमुच गम्भीर है तो उसे पश्चिम बंगाल में वाममोर्चे को खुलकर सहयोग देना होगा. क्योंकि, आज हो कल ममता बनर्जी का भाजपा के साथ जाना तय है. ठीक उसी तरह वामदलों को भी गुजरात, मध्य-प्रदेश, राजस्थान के लिए अलग से युद्धकालीन रणनीति बनाना ही होगा.

 

 

. सी. प्रभाकर 

साम्प्रदायिक-फासीवाद विरोधी जन मंच           

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