"ब्राह्मणवादी-हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक-फासीवादी" शक्तियों को परास्त करो!
भाजपा जैसी 'अजगर सांप' कांग्रेस जैसे 'मगरमच्छ' को पिछले विधानसभा चुनाव के दरम्यान राजस्थान, मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़ में पहले ही निगल चुकी है. जाहिर है, उससे उत्साहित होकर लोकतंत्र की सीढ़ियों का इस्तेमाल 'लोकतंत्र विरोधी फासीवादी निजाम' के लिए- 'अम्बानी जैसे दर्जनों भीमकाय कॉर्पोरेट घराने की आवारा "पूंजी व उसके द्वारा बेलगाम आवारा मीडिया" के सहारे मोदी की रैलियों में एक-एक- आदमी को दो -दो सौ रूपए देने, ढाबे पर छोले-भठूरे, पूरी-जलेबी खिलाने और शराब की बोतलें लूटाने के जरिये "मोदी की कथित लहर" पैदा करने की पिछले दो साल से लगातार कोशिशें की जा रही थी.
बहरहाल, कॉर्पोरेट-फासीवादी शक्तियों के नापाक गठजोड़ के बाबजूद, चुनावी रणक्षेत्र में "मोदी बनाम राहुल" के दो ध्रुवीय केंद्रित मंसूबे पर पानी फिर जाने और उसकी जगह "बहु-ध्रुवीय 'जनवादी-धर्म-निरपेक्ष" कतारों का प्रतिनिधित्व करने वाली शक्तियों के मैदान में पूरी तरह से कमर कसकर उतर चुकने के बाद फासीवादी शक्तियां बौखला गयी है. उसके इस बौखलाहट को कल गुजरात में आप नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल पर जानलेवा कातिलाना हमले, दिल्ली और लखनऊ में आप कार्यकर्ताओं के साथ खूनी भिडंत के रूप में देखा जा सकता है. जबकि कल ही केंद्रीय चुनाव आयोग ने दिल्ली के विज्ञान भवन से चुनावी बिगुल बजाया था.
मोदी के राज गुजरात के गांवों और कस्बों में रहने वाले आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों की माली हालत का बयान दिल्ली-मुम्बई में बैठकर नहीं किया जा सकता. इन समुदायों की हालत इतनी खस्ता है कि वे अबतक बुनियादी सुविधाएं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार के अवसर से ही वंचित है. जबकि विश्व हिन्दू परिषद्-बजरंग दल-आरएसएस के साम्प्रदायिक दहशतगर्दों ने उनके विरोध प्रकट करने के संवैधानिक मौलिक अधिकारों को ही कुचल दिया है. कुपोषण-गरीबी और बेकारी में जीने को अभिशप्त लोगों के सामने बाजारू बनिया विकास का झुनझुना बजाकर लोगों को बहलाया फुसलाया जा रहा है. जो भाजपा बड़े जोर-शोर से 'छद्म-विकास' का ढिंढोरा पीटती चली आ रही है उसे देखने के लिए भाजपा शासित राज्यों- 'गुजरात, मध्य-प्रदेश-छत्तीसगढ़, के दूर-दराज के गांव कस्बे में जाना बेहद जरूरी है. सरकारी-गैर सरकारी सभी आंकड़े दिखाते है कि आज गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य-प्रदेश में ही सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे की असमय मृत्यु हो रही हैं. जिसकी पुष्टि वहाँ के महिला बाल विकास विभाग ने भी किया है. उसके आंकड़ों के अनुसार, अकेले छत्तीसगढ़ में ही दिसंबर 2013 में बेमेतरा जिले में 21 हजार 681 बच्चे कुपोषित पाये गए है, जिसमें सबसे अधिक बेरला ब्लाक में अतिकुपोषित बच्चे मौजूद पाए गए हैं और यह तब है जब वहाँ के मुख्यमंत्री द्वारा एक रूपये किलो अनाज बांटने का दावा किया जाता है.
भाजपा जातिवाद को बढ़ावा दे रही है
जिस कुख्यात अमित शाह ने उत्तर-प्रदेश भाजपा की कमान सम्भालते ही नरेंद्र मोदी की शह पर कम से कम १५० साम्प्रदायिक दंगे करवाये. उसे अचानक मंच से गायब कर जातिवादी रामबिलास पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा, और हाल ही में हुए उदित को "राज" पाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. जाहिर है, इससे क्षुब्ध होकर ही घनघोर "ब्राह्मणवादी" अश्विनी चौबे, सीपी ठाकुर, कीर्ति आज़ाद, अमरेंद्र प्रताप, गिरिराज सिंह चुपचाप घर बैठकर आंसू बहाये जा रहे है. देश में "धर्म-निरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता" की लोजपाई परिभाषा अब इस बात से तय होता कि कौन कितनी सीटें उसके लिए छोड़ रहा है. रामविलास पासवान एंड ब्रदर्स एंड सन्स की पार्टी को लालू यादव एंड सन्स की राजद महज चार सीटें देना चाहते थे जबकि भाजपा ने उसे सात सीटें देने का वायदा किया है.
सत्रह घाट का पानी पी चुके भाजपा के साम्प्रदायिक अभूतपूर्व मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह और 'भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुके बीएस येदियुरप्पा को, भाजपा में वापसी कर भाजपा ने देश को संकेत दे दिया है कि आने वाले दिनों में भाजपा "कॉर्पोरेट बादशाह अम्बानी के साथ मिलकर, 'जातिवादी-साम्प्रदायिक आतंक व भ्रष्टाचार' का एक दूसरा "कांग्रेसी नमूना" ही पेश करने का इरादा रखती है.
सोलहवीं लोकसभा के इस ऐतिहासिक चुनाव में हिसाब चुकता करने का वक्त आन पड़ा है. भ्रम की जरा भी कोई गुंजाईश नहीं है. फासीवादी साम्प्रदायिक शक्तियां चाहे जितना शोरगुल मचा ले...हमें पूरा भरोसा है कि देश की प्रबुद्ध, प्रगतिशील, जनवादी, धर्म-निरपेक्ष शक्तियां एकजूट होकर 'मेहनतकशों की हिमायती वामपंथी पार्टियों औरउसके साथ खड़ी अन्य राजनीतिक दलों को अपना समर्थन देगी...यही वक्त का तकाजा है.
ए. सी. प्रभाकर
निदेशक, तीसरी दुनिया का सामाजिक नेटवर्क्स
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