Friday, September 19, 2014

मोदी सरकार ने आर्थिक सहयोग का बड़ा अवसर गंवा दिया

चीनी राष्ट्रपति शी जिंनपिंग की भारत यात्रा: मोदी सरकार ने आर्थिक
सहयोग का बड़ा अवसर गंवा दिया

भारत ने एक बड़ा आर्थिक सहयोग का अवसर गंवा दिया है. ढांचागत व अन्य
क्षेत्रों में 'पूँजी-निवेश' के लिए भारत की कॉर्पोरेट (नैगमिक)
पूंजीवादी-सामंतों की सरकार कभी विश्व-बैंक-आइएमएफ तो कभी अमेरिका-जापान
की तरफ मुंह टुकुर-टुकुर देखकर उसका दरवाजा खटखटाता रहा है...ऐसे में चीन
एक सौ अरब डॉलर (१०० बिलियन डॉलर) का पूँजी-निवेश भारत में करने का
प्रस्ताव लाया था जिसे भारत की 'ब्राह्मणवादी दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी
मोदी सरकार' ने अनुमति न देकर एक बड़ा आर्थिक सहयोग का अवसर गंवा दिया है.
हालांकि, देश-विदेश में जमा हजारों करोड़ रूपये कालाधन को ही अगर मोदी
सरकार जब्त करने का साहस दिखाए, लगभग पचपन लाख करोड़ की सम्पत्ति जो
सैंकड़ों सालों से देश के विभिन्न मंदिरों में जमा पड़ा है, इसके अलावा,
देश के अंदर बड़े सरमायेदार-इजारेदार पूंजीपति घरानों को सब्सिडी देना बंद
कर उस पर प्रत्यक्ष कर के जरिये पूंजी की उगाही करे तो हमें विदेशी
सहायता की कदापि जरूरत ही नहीं पड़ेगी. हम अपने ही बूते नियोजित तरीके से
विकास कर सकते है और अपनी समस्याएं खुद सुलझा सकते है.

आश्चर्य है, जब चीन नेपाल में एक अरब डॉलर का पूँजी-निवेश के लिए आगे
बढ़ता है तो कमबख्त कथित भारतीय ब्राह्मणवादी दक्षिणपंथी बुद्धिजीवियों के
चूतर में सुई चुभने लगती है और उसे नेपाल-चीन सहयोग कहने के बजाय इसे
'चीन की विस्तारवादी नीति कहकर चीन का नेपाल में बढ़ते प्रभाव का ढिंढोरा
पीटना शुरू कर देता है. चीन ने पिछड़े अफ़्रीकी देशों के पिछले दस अरब डॉलर
के कर्ज माफ़ कर फिर से दस अरब डॉलर का नया आर्थिक पैकेज दिया. अमेरकी
अर्थ-व्यस्था जो इस समय भयानक आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है उसका भी
पूरा कर्ज भुगतान का जोखिम चीन ने अपने सर पे उठा लिया था. चीन आज बहुत
सक्षम देश बन गया है जो अंतर-राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग में महती भूमिका
निभा रहा है. चीन ने (ब्राजील में गत जुलाई २०१४ को नवगठित नए ब्रिक्स
बैंक (जिसमे चालीस प्रतिशत की हिस्सेदारी के बाबजूद) बीस प्रतिशत
हिस्सेदारी करने वाले भारतीय चेयरमैनशिप के साथ काम करना शुरू किया. हम
जानते है की आज भारत के दौरे पे आये चीनी राष्ट्रपति शी जिंनपिंग जब अपनी
तीन दिवसीय यात्रा (जिसमे उन्होने तीन घोषित लक्ष्यों को तय किया था)
समाप्त कर रहे होंगे तब बात सीमा-विवाद (जो की ब्रिटिश हुकूमत द्वारा;
ऐतिहासिक मैकमोहन रेखा पर अटकी हुई है) को लेकर एक बार फिर से भारतीय
ब्राह्मणवादी सांप्रदायिक कथित बुद्धिजीवियों और उसके गुंडा वाहिनी
द्वारा सूअरों की तरह चीख पुकार शुरू कर दिया जाएगा...

ए. सी. प्रभाकर
निदेशक- तीसरी दुनिया का सामाजिक नेटवर्क्स

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