प्रधानमन्त्री श्री मोदी: 'मुंगेरीलाल के हसींन सपने'
भारत अपने 'पिछड़े बुनियादी ढांचे' के बूते पर आखिर कैसे 'वैश्विक कारख़ाना' बन सकता है? कुछ लोगों ने भारत को "वैश्विक दफ़्तर" कहा है जहां अंग्रेजी बोलने वाले घोर जातिवादी कुलीन विदेश यात्रा से अक्सर लौटने के बाद लगभग हर महीने कथित 'त्योहारों की छुट्टियां' मनाते, व मौज-मस्तियाँ करते रहते है. भारत की भीमकाय निजी कंपनिया- टाटा, बिड़ला, रिलायंस, सिंघानियाँ और अन्य आउटसोर्सिंग कंपनिया आदि मिलकर भी न तो अबतक देश की 'ग़रीबी मिटाने में सक्षम रहा और न ही अबतक नए रोजगार सृजित कर पा रहे है. अलबत्ता, इसने विश्व व्यापार संतुलन को अपने पक्ष में मोड़ने की बजाय उलटे अमेरिकी, यूरोपीय कंपनियों के साथ 'जूनियर पार्टनर' बनकर उसे इस देश के प्राकृतिक संसाधनों व सस्ते श्रम को लूटने में मदद ही पहुंचाई है. साल 2013 में दुनिया के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 'केवल 1.7 फ़ीसदी ही रही जो चीन के 11 फ़ीसदी से काफ़ी कम है.' हालांकि, भारत के पास अपने उत्पादन क्षेत्र को विकसित करने के लिए प्रयाप्त क्षमता होने के बाबजूद; सरकारी लगाम बहुत ढीले (उदारवादी नीतियां) होने के चलते मजदूरों की गाढ़ी कमाई से जमा 'संचय पूंजी' भी खिसककर कालाधन के रूप में विदेशी बैंकों में जमा होती चली गयी और भारतीय सरकारों ने कर्ज के लिए कभी विश्व बैंक व मुद्रा कोष की तरफ रूख किया तो कभी विदेशी पूँजी निवेश (एफडीआई) के लिए अमेरिका-जापान-यूरोप के तरफ मुख किया. भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर का अबतक केवल एक ही हाईवे बना है वह भी विदेशी पैसे से...देश में पढ़ने-पढ़ाने के वास्ते नए स्कूल-कॉलेज खोलने की लड़ाई नहीं हो रही… बल्कि, इसकी जगह किसी मस्जिद को ढहाकर मंदिर बनाने का बखेड़ा चल रहा है. विज्ञान की जगह अब 'महाभारत-रामायण-गीता जैसे धार्मिक पाखण्ड' को बढ़ावा देने और अंग्रेजी-हिंदी, तथा अन्य क्षेत्रीय जनभाषा की जगह अब पोंगा-पंडितों की भाषा 'संस्कृत' पढ़ने- पढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.
मोदी सरकार विदेश नीति के मोर्चे पर दिवालियेपन की शिकार
'अमेरिकी-परस्त' अम्बानी-अडानी पोषक आरएसएस-भाजपा की "दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक-फासीवादी मनमौजी सरकार" विदेश नीति के मोर्चे पर दिवालियेपन की शिकार है. यही वजह है कि आज रूस (जो भारत का सबसे बड़ा पारम्परिक विश्वसनीय मित्र हुआ करता था) का झुकाव पाकिस्तान की तरफ बढ़ रहा है. नए शीत-युद्ध का दौर शुरू हो चुका है जिसमे रूस, चीन, उत्तरी कोरिया, ईरान, पाकिस्तान, सीरिया, और समूचे लैटिन अमेरिका समेत अफ्रीका के देश, और साउथ एशिया में श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल से लेकर एशिया-पेसिफिक, एपेक के अधिकांशतः देश (आस्ट्रेलिया समेत) एक तरफ होंगे.
मैं मोदी का कायल हूँ
आजकल बहुत सारे लोगों को हमने मोदी का कायल बनते देखा तो सोचा इस होड़ में खुद को भी शामिल कर लिया जाय. उदाहरण के तौर पे- आप कांग्रेस के थरूर को ही ले लीजिये. इनसे भी दो-कदम आगे बढ़-चढ़कर सपा में आये-गए महानेता अभिनेता श्री अमर सिंह जिसे मोदी में 'राम व बुद्ध' की छवि दिखाई देने लगी है. मैं भी मोदी का इस बात के लिए कायल हूँ कि ईमानदार मोदी जिसका भरपेट खाता उसको भरपेट खिलाता भी है. मोदी ने अपनी कथित ऐतिहासिक 'भारत विजय' अभियान के लिए जिन प्रमुख लोगों (अमित शाह, अम्बानी-अडानी, और रामदेव) से ऋण लिया था उसे श्रेय देते हुए उसका बकाया कर्ज उतार दिया है. अम्बानी को जेड ए + की सुरक्षा मुहैया करा दिया है ताकि उन्हें जरा भी कोई खरोंच न आये, कभी सर्दी-जुकाम न हो. उसके साला को दूधारू पेट्रोलियम व गैस मंत्रालय दे दिया. अब बस जरा सी कसर बाँकी रह गयी है. इन तीनों नव-रत्नों को थोड़ा धीरज रखना चाहिए जिसे आने वाले दिनों में 'भारत रत्न' से भी नवाजा जाएगा. हमे याद है, प्रधानमन्त्री श्री मोदीजी के बड़े भाई (टायर बिक्रेता) श्री प्रह्लादजी ने कुछेक महीने पहले कहा था 'बिना मतलब मोदी किसी को चाय भी नहीं पिलाता'.
बिहार: मुख्यमंत्री श्री मांझी ढाल के रूप में इस्तेमाल न हो और 'सामाजिक-न्याय' के अपने दायित्वों का निर्वहन करें !
बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन हो इसको लेकर जदयू में अभी से बखेड़ा शुरू हो गया है. जदयू ने कभी भी मुख्यमंत्री श्री मांझी को अपना सर्वमान्य नेता घोषित नहीं किया. इससे जदयू (जो कि मध्य-पिछड़ी जातियों के भू-सामंतों का एक जमावड़ा है) के आम गरीबों-दलितों के प्रति उसके राजनीतिक सोच व चरित्र का आप आसानी से अंदाजा लगा सकते है. आपको हम याद दिलाते चले कि जदयू के राज्य अध्यक्ष श्री वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपने सार्वजनिक बयानों में हमेशा श्री नीतीश कुमार को ही सर्वमान्य नेता घोषित किया और उन्हीं के नेतृत्व में अगला बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया. तथा गरीब-दलित परिवार में जन्मे मुख्यमंत्री श्री मांझी के हाल के बयानों से पार्टी के पल्ले को झाड़ता रहा. तो क्या जदयू श्री मांझी को ढाल बनाकर इस्तेमाल कर रहे है?
हालाँकि, दलितों-पिछड़े-अल्पसंख्यकों के हक में- 'भूमि-सुधार क़ानून को सख्ती के साथ लागू कर सीलिंग से फाजिल अट्ठारह लाख एकड़ जमीने तकरीबन बारसठ प्रतिशत (६२%) भूमिहीन खेतिहर गरीब दलितों-अल्पसंख्यकों के बीच बांटने के लिए श्री मांझी के पास अब भी प्रयाप्त वक्त है. मुख्यमंत्री श्री मांझी ढाल के रूप में इस्तेमाल न हो और 'सामाजिक-न्याय' के अपने दायित्वों का निर्वहन करें ! इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए अगर जरूरत हो तो श्री मांझी को कम्युनिष्टों के साथ हाथ मिलाकर काम करना चाहिए.
राम सिंह मेमोरियल ट्रस्ट (रसमत)
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