Monday, December 1, 2014

तेल की कीमतों में गिरावट का राजनीतिक अर्थशास्त्र

 

तेल की कीमतों में गिरावट का राजनीतिक अर्थशास्त्र

 

शीतयुद्ध के नए दौर में अमेरिका/नाटो के लिए मुमकिन नहीं कि वे शक्तिशाली रूस को प्रत्यक्ष युद्ध में हरा सके. मालूम हो कि रूस के चलते ही नाटो को सीरिया, यूक्रेन से पीछे हटना पड़ा है. कास्पियन बेसिन वाला तेल गैस का भण्डारक निर्यातक रूस को अंतरराष्ट्रीय बाजार में तबाह करने के उद्देश्य से ही अमेरिकी कंपनियां (जो अधिकांशतः ओपेक देशों में तेल उत्पादन सप्लाई करने में लगी हुई है) लगातार ओपेक पर दवाब डालकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत में पचास फीसदी तक गिरावट कराने को बाध्य किया है ताकि रूस को आर्थिकरूप से तबाह किया जा सके.


अमेरिका का ओबामा नेतृत्व अब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की नीतियों का अनुसरण कर रहा है जिसने तकरीबन नब्बे खरब (९० ट्रिलियन) डॉलर नाभिकीय युद्ध की तैयारी में झोंककर सोवियत समाजवादी शिविर को बिना किसी प्रत्यक्ष युद्ध के ही ढहा दिया. जाहिर है, आर्थिक मंदी से जूझ रहे अमेरिका, यूरोप पहले से ही 'ब्रिक्स, एपेक आसियान' के तेजी से उभरती अर्थ-व्यवस्थाओं से हांफ रहा है.


शीतयुद्ध के नए दौर को समझने के लिए माथे पर बहुत ज्यादा बल देने की जरूरत नहीं है. कल टर्की के राष्ट्रपति के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की बैठक में नए गठबंधन से जुड़ने का खुला आह्वान और रूस द्वारा; पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराया जाना इसके बहुत स्पष्ट संकेत है. मिसाइल-युक्त दो युद्धपोतों के साथ रूसी राष्ट्रपति का आस्ट्रेलिया में आयोजित ग्रुप-२० की मीटिंग में पहुंचना कोई सामान्य बात नहीं थी.

 

. सी. प्रभाकर

निदेशक, तीसरी दुनिया का सामाजिक नेटवर्क्स

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