'मेक इन इंडिया' नहीं 'मेक फॉर इंडिया'
निर्यात आधारित अर्थव्यवस्थाओं: जापान, यूरोपियन यूनियन तथा अमेरिका आज गंभीर वैश्विक मंदी की चपेट में है. फिक्की के व्याख्यान माला में रिज़र्व बैंक के गवर्नर श्री रघुराम राजन ने वैश्विक मंदी के इस दौर में निर्यात पर आधारित 'मेक इन इंडिया' की जगह घरेलू उपभोग में वृद्धि (घरेलू मांग) पर आधारित 'मेक फॉर इंडिया' का विकास मॉडल को अपनाने का सुझाव दिया है. उन्होंने कहा है कि "एफडीआई" को आकर्षित करने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार नहीं हैं और इसके लिए देश के हितों के साथ समझौता नहीं किया जायेगा. निर्यात आधारित विकास की मनमोहन-मोदी की रणनीति के खिलाफ बोलते हुए श्री रघुराम राजन ने निर्यातकों को बेशुमार सब्सिडी देने का भी विरोध किया और कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में निर्यात आधारित विकास का यह मॉडल सिर्फ चंद कंपनियों के लिए भले ही फायदेमंद हो पर समग्रता में यह देश के हित में नहीं है. इसकी जगह घरेलू बाज़ार का विस्तार किया जाना चाहिए.
जाहिर है, श्री रघुराम राजन ने वही बात दोहराया है जिसे वामपंथी दलों ने पिछले कई अर्से से संसद के अंदर और बाहर बार-बार कहा है. घरेलू बाज़ार का अगर विस्तार करना है तो मोदी सरकार को पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार द्वारा; अपनायी गयी "नवउदारवादी वैश्वीकरण" की नीतियों से नाता तोडना होगा. 'मेक फॉर इंडिया' के विकास मॉडल को स्थापित करने के लिए हाशिये पर डाल दिए गए आबादी के विशाल हिस्से को विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में व्यापक भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए विकास की चिंता के केन्द्र में गरीबों को लाना होगा, आम जनता की क्रय-शक्ति बढ़ें और औद्योगिक मालों की मांग बढे इसके लिए कृषि क्षेत्र जहां आबादी के पचपन से साठ फीसदी लोग पूरी तरह आज भी निर्भर है, उन पर समुचित ध्यान दिए बिना तथा समाज कल्याण की विभिन्न योजनाओं को बढ़ावा दिए बिना मोदी का कथित 'मेक इन इंडिया' हास्यास्पद लगता है. जन-केंद्रित विकास के लिए बड़ी-बड़ी 'दैंत्यानुमा देशी-विदेशी कंपनियों और कार्पोरेटों ( ४००० से भी अधिक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस देश के प्राकृतिक संसाधनों व सस्ते श्रम-शक्ति को लूट रही है) के मुनाफों' पर चोट करनी होगी.
आंकड़े दिखाते है कि चालू वर्ष में अप्रैल से नवंबर की अवधि में आयात 316 अरब 37 करोड 30 लाख डालर के मुकाबले निर्यात महज 215 अरब 75 करोड 60 लाख डालर तक सिमट जाने से व्यापार घाटा लगातार बना हुआ है. इस व्यापार असंतुलन के चलते "भुगतान संतुलन की समस्या" गहराती चली जा रही है. वहीँ दूसरी तरफ, डॉलर के मुकाबले में रूपये का संदर्भ मूल्य गिरते चले जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक बोझ पद रहा है. आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से नवंबर 2014 की अवधि में व्यापार घाटा बढ़कर 100 अरब 61 करोड़ 70 लाख डालर हो गया है. जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में व्यापार घाटा 96 अरब 89 करोड़ डालर रहा था.
राम सिंह मेमोरियल ट्रस्ट (रसमत)
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