Monday, March 9, 2015

लाल झंडे को लाल सलाम!

लाल झंडे को लाल सलाम!



कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड मैदान में माकपा के २४ वें राज्य सम्मलेन के
मौके पर आहूत अभूतपूर्व ऐतिहासिक रैली जिसमे तकरीबन बारह लाख लोगों ने
स्वतः-स्फूर्त ढंग से हिस्सा लिया है, वास्तव में पिछले सभी रिकार्डों को
तोड़ते हुए यह ब्रिगेड मैदान ही इस बात का गवाह बन चुका है कि 'ममता सरकार
के अघोषित आपातकाल में तकरीबन पांच सौ से भी ज्यादा माकपा कार्यकर्ताओं
की हत्या किये जाने के बाबजूद; 'वाम दुर्ग के नाम से विख्यात पश्चिम
बंगाल' में एकबार फिर से तूफ़ान उठ खड़ा हुआ है. लाल झंडा लहराते हुए
हजारों कार्यकर्ता गर्मजोशी से कह रहा है: 'हम जनता के साथ है और जनता
हमारे साथ है.'



जाहिर है, इससे ठीक सफ्ताह भर पहले ही माकपा के त्रिपुरा राज्य सम्मलेन
के मौके पर भी अगरतला में अभूतपूर्व रैली हुई है. इसी तरह आंध्र-प्रदेश,
तेलंगाना, केरल, तमिलनाडू, हिमाचल-प्रदेश, राजस्थान जैसे अनेक राज्यों
में भी लाखों लोगों ने इस लाल झण्डें को सलामी दिया है. हमे याद है,
सोवियत समाजवादी विघटन के समय भी माकपा के तात्कालीन महासचिव का. सुरजीत
ने पूरी दृढ़ता के साथ कहा था: " जब तक दुनिया में भूख, गरीबी, बेकारी,
शोषण, जुल्म-उत्पीड़न रहेगा तब तक "मार्क्सवाद की प्रासंगिकता" बनी
रहेगी."



हालाँकि, सोवियत समाजवादी शिविर के ढहने और पश्चिम बंगाल में लगे धक्के
से माकपा नेताओं-कार्यकर्ताओं ने अपनी कमजोरियों और भूल-चूक को ईमानदारी
पूर्वक स्वीकार करते हुए इन बीते दिनों में जनता से बहुत कुछ सीखा है.



अंतिम विकल्प 'वाम विकल्प' है



जैसा कि अंतिम विकल्प 'वाम विकल्प' ही है. इसलिए, माकपा नेताओं ने रैली
को सम्बोधित करते हुए एक स्वर में कहा है कि चाहे दिल्ली में बैठी 'घोर
प्रतिक्रियावादी-सांप्रदायिक-फासीवादी मोदी सरकार' हो या कोलकाता की
'फासीवादी ममता सरकार' वास्तव में दोनों ही सरकारें जनता का शत्रु है, जो
देशी-विदेशी लूटेरे बड़े-बड़े पूंजीपति/कॉर्पोरेट घराने के हितों को आगे
बढ़ाने के लिए आम किसानों-मजदूरों पर एक के बाद दुसरे हमले करती चली जा
रही है. मंहगाई बेलगाम है. तिस पर बेरोजगारी बढ़ती ही चली जा रही है. वही
हरेक साल नए-नए अरबपतियों को पैदा कर आर्थिक असमानता की खाई को और ज्यादा
चौड़ा किया जा रहा है. तो दूसरी तरफ, देशभर में जनता की
सामाजिक-सांस्कृतिक एकता को खंडित करने के लिए सांप्रदायिक तत्वों को
उभारकर भारतीय संविधान के 'धर्मनिरपेक्ष व जनतांत्रिक स्वरूप' पर
सुनियोजित तरीके से हमले किये जा रहे है. कॉर्पोरेट पोषित दक्षिणपंथी
आरएसएस-नीत साम्प्रदायिक मोदी सरकार साम्राज्यवादी अमेरिका के साथ मिलकर
देश को मध्य-युगीन कालीन बर्बरता की तरफ धकेलना चाहती है. आज से अट्ठाईस
साल (२८) पहले कुत्तों ने कहा था: खंडहर में बूत लगाना है, और लोमड़ी-गीदड़
ने दस हजार नरकंकाल ही जुटा लिए.



जाहिर है, वर्गीय-शत्रु सरकारों के खिलाफ वाम-जनवादी व धर्मनिरपेक्ष
ताकतों को एकसाथ मिलकर साझा आंदोलन छेड़ना होगा.



ए. सी प्रभाकर



तीसरी दुनिया का सामाजिक नेटवर्क्स

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