TO UNDERSTAND NEHRU'S HIGH TREASON FOR BHAARAT AND HINDUUS, IT IS ESSENTIAL TO KNOW WHO REALLY HE WAS
History Maker
नेहरु - गाँधी वंश की च्चाई
From: Pramod Agrawal <pka_ur@yahoo.com>
Sent: 04 April 2016
शुरुआत होती है "गंगाधर" (गंगाधर नेहरू नहीं), यानी मोतीलाल नेहरू के पिता से । नेहरू उपनाम बाद में मोतीलाल ने खुद लगा लिया था, जिसका शाब्दिक अर्थ था "नहर वाले", वरना तो उनका नाम होना चाहिये था "मोतीलाल धर", लेकिन जैसा कि इस खानदान की नाम बदलने की आदत थी उसी के मुताबिक उन्होंने यह किया । रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज की किताब "ए लैम्प फ़ॉर इंडिया - द स्टोरी ऑफ़ मदाम पंडित" में उस तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा है, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान था, जिसका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था. लोग सोचेंगे कि यह खोज कैसे हुई?
दरअसल नेहरू ने खुद की आत्मकथा में एक जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगा धर थे, ठीक वैसा ही जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत (बहादुरशाह जफ़र के समय) में नगर कोतवाल थे. अब इतिहासकारों ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफ़र के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था..और खोजबीन पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ, जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे, लेकिन किसी गंगा धर नाम के व्यक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला (मेहदी हुसैन की पुस्तक : बहादुरशाह जफ़र और १८५७ का गदर, १९८७ की आवृत्ति), रिकॉर्ड मिलता भी कैसे, क्योंकि गंगा धर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर से डर कर बदला गया था, असली नाम तो था "गयासुद्दीन गाजी" । जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था,तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था (जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं), अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे, जो हिन्दू राजाओं (पृथ्वीराज चौहान ने) ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया, लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे । उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ़ कूच कर गया...हमने यह कैसे जाना ? नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने रोक कर पूछताछ की थी, लेकिन तब गंगा धर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं, बल्कि कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया... बाकी तो इतिहास है ही । यह "धर" उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है, और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह "दर" या "डार" हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है । लेकिन मोतीलाल ने नेहरू नाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे । इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ़ यही है कि हमें पता चले कि "खानदानी" लोग क्या होते हैं ।
अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव (यहाँ उपलब्ध है) लिखते हैं....ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर । यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी । कमला शुरु से ही इन्दिरा के फ़िरोज से विवाह के खिलाफ़ थीं... क्यों ? यह हमें नहीं बताया जाता...लेकिन यह फ़िरोज गाँधी कौन थे ? फ़िरोज उस व्यापारी के बेटे थे, जो "आनन्द भवन" में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था...नाम... बताता हूँ.... पहले आनन्द भवन के बारे में थोडा सा... आनन्द भवन का असली नाम था "इशरत मंजिल" और उसके मालिक थे मुबारक अली... मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे...खैर...हममें से सभी जानते हैं कि राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं... और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के... तो फ़िर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था.... किसी को मालूम है ? नहीं ना... ऐसा इसलिये है, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाय करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में... नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया... फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था "घांदी" (गाँधी नहीं)... घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था...विवाह से पहले फ़िरोज गाँधी ना होकर फ़िरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था...हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे... यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है । इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं । शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था... अब आप खुद ही सोचिये... एक तन्हा जवान लडकी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों... थोडी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी, और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी ? इसी बात का फ़ायदा फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली (नाम रखा "मैमूना बेगम") । नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था...जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबडतोड नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले.. यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये... तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गाँधी । और विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और वे महात्मा भी कहलाये...खैर... उन दोनों (फ़िरोज और इन्दिरा) को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे । इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ थे नेहरू एज" (पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था, कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था" । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, हालाँकि तलाक नहीं हुआ था । फ़िरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे । तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन मूर्ति भवन" मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ राहत मिली थी । १९६० में फ़िरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे । अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी (या श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात संजय गाँधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था, संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस का बेटा था । संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था । ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था) । अब संयोग पर संयोग देखिये... संजय गाँधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ... कहाँ... मोहम्मद यूनुस के घर पर (है ना आश्चर्य की बात)... मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीतिरिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफ़िल रहें.... मेनका जो कि एक सिख लडकी थी, संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाँधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था (यह इन्द्रसभा की नृत्यांगना टाईप का नाम लगता था), पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी । फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था । आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी, वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे...। (संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ, अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे... इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना [अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ] के साथ इन लोगों की विशेष नजदीकियाँ....)एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं - "१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी । नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं । नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया । उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया ।
मथाई लिखते हैं - मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफ़ी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा.....लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कैथोलिक संस्कारों में बडा करूँ, चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो.... लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था.... खैर... हम बात कर रहे थे राजीव गाँधी की...जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था । राजीव गाँधी बन गये थे रोबेर्तो और उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लडकी का नाम था "बियेन्का" और लडके का "रॉल" । बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीतिरिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम "बियेन्का" से बदलकर प्रियंका और "रॉल" से बदलकर राहुल कर दिया गया... बेचारी भोली-भाली आम जनता !
प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था । हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है... ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था, क्योंकि वे लगातार तीन साल फ़ेल हो गये थे... लगभग यही हाल सानिया माईनो का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं... जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गाँधी केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बडे ही मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज की स्नातक हैं, अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी)। क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया गया, ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से । इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है और "रॉल" को भारत का भविष्य बताया जा रहा है । मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथोंहाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं....और यदि कोई सानिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है और हिन्दुस्तान की बदकिस्मती पर सिर धुनना ही होगा...
दरअसल नेहरू ने खुद की आत्मकथा में एक जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगा धर थे, ठीक वैसा ही जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत (बहादुरशाह जफ़र के समय) में नगर कोतवाल थे. अब इतिहासकारों ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफ़र के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था..और खोजबीन पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ, जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे, लेकिन किसी गंगा धर नाम के व्यक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला (मेहदी हुसैन की पुस्तक : बहादुरशाह जफ़र और १८५७ का गदर, १९८७ की आवृत्ति), रिकॉर्ड मिलता भी कैसे, क्योंकि गंगा धर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर से डर कर बदला गया था, असली नाम तो था "गयासुद्दीन गाजी" । जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था,तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था (जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं), अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे, जो हिन्दू राजाओं (पृथ्वीराज चौहान ने) ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया, लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे । उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ़ कूच कर गया...हमने यह कैसे जाना ? नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने रोक कर पूछताछ की थी, लेकिन तब गंगा धर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं, बल्कि कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया... बाकी तो इतिहास है ही । यह "धर" उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है, और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह "दर" या "डार" हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है । लेकिन मोतीलाल ने नेहरू नाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे । इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ़ यही है कि हमें पता चले कि "खानदानी" लोग क्या होते हैं ।
अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव (यहाँ उपलब्ध है) लिखते हैं....ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर । यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी । कमला शुरु से ही इन्दिरा के फ़िरोज से विवाह के खिलाफ़ थीं... क्यों ? यह हमें नहीं बताया जाता...लेकिन यह फ़िरोज गाँधी कौन थे ? फ़िरोज उस व्यापारी के बेटे थे, जो "आनन्द भवन" में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था...नाम... बताता हूँ.... पहले आनन्द भवन के बारे में थोडा सा... आनन्द भवन का असली नाम था "इशरत मंजिल" और उसके मालिक थे मुबारक अली... मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे...खैर...हममें से सभी जानते हैं कि राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं... और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के... तो फ़िर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था.... किसी को मालूम है ? नहीं ना... ऐसा इसलिये है, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाय करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में... नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया... फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था "घांदी" (गाँधी नहीं)... घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था...विवाह से पहले फ़िरोज गाँधी ना होकर फ़िरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था...हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे... यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है । इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं । शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था... अब आप खुद ही सोचिये... एक तन्हा जवान लडकी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों... थोडी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी, और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी ? इसी बात का फ़ायदा फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली (नाम रखा "मैमूना बेगम") । नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था...जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबडतोड नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले.. यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये... तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गाँधी । और विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और वे महात्मा भी कहलाये...खैर... उन दोनों (फ़िरोज और इन्दिरा) को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे । इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ थे नेहरू एज" (पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था, कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था" । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, हालाँकि तलाक नहीं हुआ था । फ़िरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे । तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन मूर्ति भवन" मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ राहत मिली थी । १९६० में फ़िरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे । अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी (या श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात संजय गाँधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था, संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस का बेटा था । संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था । ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था) । अब संयोग पर संयोग देखिये... संजय गाँधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ... कहाँ... मोहम्मद यूनुस के घर पर (है ना आश्चर्य की बात)... मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीतिरिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफ़िल रहें.... मेनका जो कि एक सिख लडकी थी, संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाँधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था (यह इन्द्रसभा की नृत्यांगना टाईप का नाम लगता था), पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी । फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था ।
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी, वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे...। (संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ, अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे... इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना [अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ] के साथ इन लोगों की विशेष नजदीकियाँ....)एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं - "१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी । नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं । नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया । उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया ।मथाई लिखते हैं - मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफ़ी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा.....लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कैथोलिक संस्कारों में बडा करूँ, चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो.... लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था....
खैर... हम बात कर रहे थे राजीव गाँधी की...जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था । राजीव गाँधी बन गये थे रोबेर्तो और उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लडकी का नाम था "बियेन्का" और लडके का "रॉल" । बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीतिरिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम "बियेन्का" से बदलकर प्रियंका और "रॉल" से बदलकर राहुल कर दिया गया... बेचारी भोली-भाली आम जनता !प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था । हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है... ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था, क्योंकि वे लगातार तीन साल फ़ेल हो गये थे... लगभग यही हाल सानिया माईनो का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं... जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गाँधी केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बडे ही मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज की स्नातक हैं, अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी)। क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया गया, ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से । इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है और "रॉल" को भारत का भविष्य बताया जा रहा है । मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथोंहाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं....और यदि कोई सानिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है और हिन्दुस्तान की बदकिस्मती पर सिर धुनना ही होगा...
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On Thursday, 15 December 2016, bhagwat goel <bhagwatgoel2000@yahoo.co.in> wrote:
DEC 15,16
BUT THEN NEHRU WAS A MUSLIM - A MUGHAL AT THAT, NO BODY DENIES THIS. RIGHT FROM MOTI LAL, THIS FAMILY HAS NOTHING BUT IMPERSONATION AND LIES. UPTO RAJIV, SANJAY WERE ALL MUSLIMS UNTILL SONIA COMPELLED RAJIV TO CONVERT TO CATHOLISM.
THEY CONTINUE TO FOOL US SO SUCCESSFULLY THAT NONE RAISES ANY VOICE.
BHAGWAT GOEL
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MOTI LAL NEHRU:
From: Bhalchandra Thattey - bgthattey@gmail.com
Sent: January 1, 2017
Pramod Agrawal,
Are you trying to say that in spite of being born in a Prostitute Colony in Allahabad he turned out to be a GEM / Jawahar?
You probably know that the Businesses are banned from using the name JAWAHAR for their businesses.
But after reading the secret you have opened, how many you think would like to adopt the name.
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WHY SUPPRESS JAWAHARLAL NEHRU'S HIGH TREASON?
From: RSingh305@aol.com;
Sent: January 4, 2017
WORST CRIME of Nehru is betrayal for Akhand Bhaarat. All those born before 15 August 1947, and there are still many, cannot forget the India that was really great.
Then the MUSLIM bully threatened to launch CIVIL WAR and kill every Hindu if all the areas where the Muslims were in majority were not surrendered to ISLAM. NEHRU did not say "THAT IS HIGH TREASON!" But he "went along" with the preposterous idea of surrenderng the sacred soil ("dharti mata") of our HINDUU nation.
The natural boundaries of Bharat WENT and we had the new border brought down to WAGAH. Nehru was not lynched but honoured! All-India Congress Party was not banned or exterminated but given full power over the Hindu nation to divide, brainwash, intimidate, plunder, "bash and batter"!
All Indians, especially HINDUS, ought to think of Mother India first, not of mortal "men of straw" like Nehru who appeared to be giants.
Partition was EVIL. We CANNOT live with evil till eternity. And having given one third of our BEST lands to them we cannot see any MUSLIM in Bharat. How would a rape victim look at her rapist? Have Hindu brains been permanently deformed, not to understand the gravity of being bullied & beaten by a minority that owes their first loyalty to Mecca, NOT Mathura?
So here is what we should do: We must UNITE to put an end to the Evil. We must recover all those territories that Nehru surrendered without Rererendum. We must ask the MUSLIMS in Bharat to either LEAVE for Pakistan or do whatever they can, to SMASH Pakistan and put an end to mischievous Bangladesh and get back to the borders of 1947.
As far as Nehru is concerned, his name should be blacklisted and removed from all publc and private buildings like the names of HITLER & MUSSOLINI.
Muslims who broke Akhand Bharat, can also make it. Only we ourselves must believe in Akhand Bharat and then squeeze the life out of the treacherous Muslims in Bharat who are posing to be secular to deceive us once again!
Let there be a lesson that NONE can surrender an inch of our TERRITORY without Referendum or FIGHT. Let there be a lesson that we, HINDUS, will not honour any traitor.
Finally in our time INTERNET is a great POWER. Hence any "desh bhagat" Sarkar or a large Hindu party like VHP and Hindu Mahasabha should ensure that each and every HINDU is on Internet and has his/her own ID in order to get the message at once across the whole of Bharat. Then our RESPONSE to EVIL will be collective (& effective!) and not individual (zero!).
Finally, since we are celebrating Guru Gobind Singhji's birth anniversary, and the Prime Minister is at PATNA, let us look at the words and deeds of that great son of Bharat and let us recall how he put spirit in our demoralised nation when the ISLAMIC persecution of Hindus was at its WORST, not only in Kashmir that became 90% Muslim from 90% HINDU under the "Butcher" called AURANGZEB. (Cowards in power must get inspired to name that road in New Delhi "Guru Tegh Bahadur Marg" and the airport as "Guru Gobind Singh International Airport, New Delhi!)
Let the nation read all about the "Saint & Warrior" Guru's battles for the liberation of Sri Ram Temple in Ayodhya and let us recall how he turned an unarmed "Gandhian sadhu" (Banda Bairaagi) at Naded into a WARRIOR "Banda Singh Bahadur". He performed a MIRACLE to make the Hindus warriors like Sri Krishna making Arjun a brave FIGHTER from his doubt and confusion.
Today we expect not only PATNA but the whole of Bharat in CELEBRATION & ILLUMINATION. That will be the most powerful signal to the enemies of Hindus and Hindusthan to put the Native above the Foreigner- and that includes Islam that was brought by VIOLENCE from Mecca to Sindh in 712 AD, and stayed on ever since, till it sliced off one third of India in 1947 and also stayed back to threaten the Hindus on OUR OWN SOIL.
Thank you for being so clear about Nehru's autocratic nature. In 1947 we did not need an autocrat or a dictator and his arrogant daughter but a simple Man of People just like Narendra Modi.
We have to recover our collective manhood and unity first. And then undo all the setbacks and the decades "lost" due to traitor Nehru's policies.
It is IMPOSSIBLE for a proud nation to live in a Bharat that was easily "beaten & defeated" by a vicious minority that dictated the terms of the most humiliating Surrender of history, and gave our noble and divine land such obscene and vulgar borders that cut through Punjab, Kashmir, Assam and Bengal in violence and bloodshed.
Nehru ruined our Hindu-Muslim "Power Ratio" as 100 to 1. That meant "One Muslim could chase 100 Hindus out of their homes in 1947."
Let us now declare Guru Gobind Singhji as the Defender of our "Dharma & Dharti" in order to alter the Power Ratio to 1:125.000- that means "One Hindu can confront 125,000 of the enemy and chase them back to Mecca!"
Bharat will be Akhand Bharat again, the same country in which Rashtrapati Mukherjee was born! If anyone has a better idea, please say so.
Let us hope Modiji returns from Patna fully transformed by the Spirit of Guru Gobind Singhji. The first to feel the thrill will be the Hindus of SRINAGAR!
Rajput, 4 Dec 17
PS:
Bhaarat's ETERNAL border is at KHYBER. Partition, conceded by NEHRU, can never be consigned to "history" because it is still there" in the shape of that disgusting border between Wagah and Atari! That line drawn in sand, like Nehru's cease-fire in Kashmir, will be "blasted" sooner or later- by Muslims or Hindus! So, let us take the INITIATIVE!
Partition was EVIL and we are still living in it, inhaling its stink, day and night! It is unacceptable!
"PARTITION" remains our biggest national challenge, Nehru's dirty legacy. We shall ignore it at our PERIL. Upon its "resolution" depends the very survival of Hindus (Buddhists, Sikhs, Jains, agnostics, atheists and all the self-styled "superior secular" lot) in South Asia.
Hence it is UNACCEPTABLE.
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CRITICIZISM of NEHRU.
In a message dated 1/4/2017, smdave1940@gmail.com writes:
YES. I AM ONE OF THEM WHO CRITICIZE NEHRU TO DEROGATE HIM.
THERE ARE SOME AGED PEOPLE OF MY AGE (77 YEARS) WHO THINK THE CONGRESS WHO FOUGHT FOR INDEPENDENCE IS THE SAME WHAT IT IS NOW. HENCE SOME ORTHODOX PEOPLE STILL VOTE FOR CURRENT NEHRUVIAN CONGRESS.
ACCORDING TO ME, NEHRU WAS NOT DEMOCRATIC. BUT BECAUSE HE HAD TALKED A LOT ON DEMOCRACY, IT WAS NOT POSSIBLE FOR HIM TO BE UNDEMOCRATIC OPENLY. BUT HIS PROGENY HAD NO CONTRIBUTION IN THE FREEDOM STRUGGLE, HE HAD BECOME UNDEMOCRATIC.
NEHRU HAD NO VISION, AND HE HAD FAKE IDEAS ON SOCIALISM. THERE IS NOTHING LIKE SOCIALISM IN THE WORLD. IN REALITY, THOSE WHO ARE STRONGER THEY SUPPRESS OTHERS. IN SO CALLED DEMOCRACY IT IS A SOMEWHAT SOFT AND IN COMMUNISM IT IS HARD.
NEHRU HAD A POLITICAL POWER HENCE HE SHOULD BE CONDEMNED ON HIS BLUNDERS IN FOREIGN AFFAIRS. HE WAS WARNED FOR HIS LIKELY BLUNDERS BY SARDAR PATEL, BUT HE REMAINED ADAMANT. WE ARE FACING PROBLEMS OF HIS BLUNDERS TILL TODAY AND WE MAY FACE IT FOR A LOT MORE PERIOD.
HE WAS HYPOCRITE. HE USED TO TALK OF NON-VIOLENCE, BUT HE BEFORE THE ELECTION OF 1962, ATTACKED DIV, DAMAN AND GOA. IN DEMOCRACY, THE DYNASTY HAS NO PLACE, BUT HE CONSPIRED TO SEE THAT HIS DAUGHTER BECOMES HIS SUCCESSOR.
HE HAD FOUNDED POLITICAL HYPOCRISY IN INDIAN POLITICS.
NEHRU IS DEAD. BUT NEHRUVIAN CONGRESS IS ALIVE.
STILL WITHIN THIS NEHRUVIAN CONGRESS, NO BODY CAN SPEAK AGAINST NEHRU'S POLICY. IF SOME BODY DOES SO, HE WOULD BE SACKED OUT.
I WOULD LIKE TO CONTINUE TO ABUSE NEHRU, TILL NEHRUVIAN CONGRESS REMAINS ALIVE.
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WHY SUPPRESS JAWAHARLAL NEHRU'S HIGH TREASON?
WHY NEHRU OUGHT TO HAVE BEEN HANGED
On Tuesday, 3 January 2017, <RSingh305@aol.com> wrote:
NEHRU, aware of his high treason (signing the unconditional surrender of India like Admiral Doenitz in Germany and of Japan that was announced on August 15*, 1945, did not want anyone to mention the word "Partition".
Secondly, he did not want a popular and capable man or woman, especially a HINDU, to become Prime Minister because he was mortally afraid that a true patriot (like Modiji) will do the first thing to look at the role of Gandhi and Nehru at those "Independence" Talks with the Viceroy that ended in "Partition", that is, the loss of five provinces, including the strategic Khyber Pass and the shining "jewels" like Chitral, Gilgit, Quetta and Chittagong, overnight.
So he suppressed democracy in order to make sure that his own daughter will succeed him and after her, his grandson, and so on, as long as possible in order "to keep the lid on Partition"!
Isn't is astonishing that Nehru's legacy is still being honoured by his loyal "dogs", including the "Rashtrapati" of Bharat in 2017? The word "Partition" is taboo in the highest RULING (and fooling) circles in Bharat and the FOURTH generation "bogus" Gandhi Rahul is the Pretender to Nehru's "throne" backed by his mother whose first loyalty, by all logic, has to be to her own LAND of birth and Religious Conviction that is "light years" away from the Hindu Dharma.
Someone may ask, "Why do you mention Hindu Dharma when we have all washed our hands of Religion and become "secular" AS PER CONSTITUTION?"
To such a brainwashed secular Hindu (sadly, too many to count!) we say, "Both FOREIGN religions differ from our NATIVE religions fundamentally in the following manner:-
Christianity speaks of birth without the role of a man but due to intervention of God. Isn't it against the Laws of Nature? And Islam speaks of God having dictated the Koran to illiterate Mohammed. Isn't that again AGAINST common sense and logic? Had the author been God then He could not hate the "Kafirs" and the pigs and the dogs, nor sanction beating of wives and created a paradise full of virgins for his Ghazis and Jehadis as a REWARD for KILLING the innocent Non Muslims and abducting & raping the captured YAZIDI, HINDU & CHRISTIAN girls and women!
That is where India's own NATIVE religions score the top marks. They are according to the Laws of nature and confirm to common sense. So when did the MISFORTUNE strike Hindusthan?
When the insane tried to make the sane go mad, and succeeded. Proof of their success is three-fold-
1. Hindus accept a Constitution with two major faults: (a) The Document shows contempt of our NATIVE religions in either denying them totally, or equating them with Christianity and Islam; (b) There is NO mention of that bogus one sided territorial surrender called "Partition"! Accepting Partition with the ease of breathing has put Delhi's neck under the guillotine. In other words, due to this Constitution the "days of Delhi" are numbered. The clock is ticking for the disappearance of Hindus from Hindusthan, starting with SRINAGAR!
Look not at Bharat from the grassroots level but from the back of an elephant, or better still from the space ship overhead! You will clearly see the "lines in sand" drawn by NEHRU, and called "borders" in his Constitution!
But the WORST "crime" of Constitution is that it hides Nehru's High Treason against Hindusthan for which he ought to have been "hanged to death a million times"!
Rajput
3 January 2017
*August 14 and 15 are celebrated as Victory over Japan Day in many Allied countries.
https://en.wikipedia.org/wiki/Surrender_of_Japan#Broadcast_of_the_Imperial_Rescript_on_surrender
We see how Mountbatten equated our Bharat with Japan by choosing these dates. And despicable stooge NEHRU obliged! The dates of India's PARTITION could NOT be different from those of Japanese unconditional surrender!
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WHY SUPPRESS JAWAHARLAL NEHRU'S HIGH TREASON?
Kumar Arun <kumar2786@hotmail.com>
On Tuesday, January 3, 2017, wrote:
No society, no nation and no human being, can move on the right path or take right course of actions until they keep learning from past experiences. This is not aphilosophies but it is called "wisdom". Once commonsense & wisdom, are lost, any human being is called insane, because without sanity, only body may react but not in coordination with the mind.
The country like USA which is only 300 plus years old, have managed its sanity than many old civilization and culture like Mesopotamia & Indus valley. However, all the goodness from one of the the oldest civilization, Indus valley, have been going downwards, especially after Islamic & Christian invasion. In my assessment, once you loose your culture, especially their mother tongue (Sanskrit), mass start loosing their identity. Today's Bharatiya people descending from the Indus valley civilization, have either accepted the slavery under Islam-Christianity or feel satisfied in living under their gift.
Our so called "father of the nation -Gandhi" and "uncle of the nation-Nehru'" had choice to chose a "re-start" button to bring back the glory of Bharat-Mata. However, they not only chose otherwise but decided to destroy the God gifted culture and traditions by accepting white British suggested "so called Indian constitution". If I am understanding correctly, the above subject matter and it's author is exhibiting deep rooted frustration which I do appreciate very much.
Dr. Kumar Arun
f: India heritage Foundation
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A Partition too deep: How events in 1947 shaped Pakistan today
herald.dawn.com
We may choose to suppress particular aspects of the past, which does not mean what we later remember did not exist.,
Posted by: Dahyabhai Patel <dsrnn@aol.com>
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पाकिस्तान जैसा होने की तरफ बढ़ते भारत का सच!
https://www.youtube.com/watch?v=iJND94kNuXk
Pakistani parlimentry people beating former minister
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Rampant Corruption of U.S. Government Officials - Was Happening Equally So during Nehru/Gandhi Dynasty
It is eye opener about CORRUPTION under the previous regimes in US.
This was also the case in India during the rule by NEHRU? GANDHI DYNASTY that ended in May 2014. Obama and Clintons were great friends also of Nehru/ Gandhi Governments in India.
Rajput, 2 Feb 17
https://www.youtube.com/watch?feature=youtu.be&v=MDWhGxmJbjs&app=desktop
In a message dated 2/2/2017 1:23:59 A.M. GMT Standard Time, janet@levyross.com writes:
5 minutes with Chris Farrell, former military intelligence officer, with Judicial Watch, doing the job of the FBI:
https://m.youtube.com/watch?feature=youtu.be&v=MDWhGxmJbjs
Janet Levy, Los Angeles
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Why did Pt Nehru permitted Shri Mountbatten to remain as Governer General
On 14 January 2017, Mukund Apte <mdapte2@gmail.com> wrote:
After Independence, why did Pt Nehru permitted Shri Mountbatten to remain as Governer General is a puzzle aliong with keeping Gen Bucher as the C-in-C of Bhaarat. Both these activities did influence further confusion not only regarding Kashmir but even regarding Pt. Nehru's decision to keep Muslims in Bhaarat after Pakistan was created (out of Bhaarat) for Muslims since they declared, it not to be possible to stay together with Hindus in Bhaarat. And as anticipated the resident Muslims in Bhaarat are also creating problems for Bhaarat. In fact Shri अयोध्या प्रसाद त्रिपाठीजी (सूचना सचिव) of आर्यावर्त सरकार in Delhi also is stating about the British Plan to control Bhaarat after the Independence in 1947.
USA is continuing to help Pakistan to continue troubling Bhaarat is simply for their selfish motive. They can earn money from selling their war materials in the world, especially to Muslim States. and they will continue to do so till doom's day. And that day appears to be now approching America due to the Capitalism that they are practicing since long.
Let us hope Bhaarat can take advantage of this situation and unite Bhaarat once more by absorbing Pakistan back. Let us see how Bhaarat can achieve this.
------Mukund Apte
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