माकपा महासचिव का. प्रकाश करात के नाम खत…
माकपा का २१ वां राष्ट्रीय महाधिवेशन: ठोस राष्ट्रीय मुद्दे तय कर नए जंग
का ऐलान करो!
दुनिया की दूसरी और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी कम्युनिष्ट पार्टी
"मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी" माकपा इन दिनों अपने २१ वें राष्ट्रीय
महाधिवेशन (जो १४-१९ अप्रेल के बीच आंध्राप्रदेश के विशाखापतनम में पहले
से ही निर्धारित है) की तैयारी में जोर-शोर से जुटी हुई.
जाहिर है, एक तरफ 'वैश्विक पूंजीवादी महामंदी' जो अपने ही गति नियमों के
चलते "पूँजी व श्रम" के प्रमुख अंतर्विरोधों के चलते आज संकट ग्रस्त है,
जिसके लम्बे समय तक जारी रहने और सामान्य स्तर पर आने में कम से कम २०१८
तक का अनुमान पहले ही विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने लगा रखा
है. तो वहीँ दूसरी तरफ, वैश्विक पूँजी, दुनियांभर में कामगारों, श्रमिकों
और मेहनतकशों के जबरदस्त प्रतिरोधात्मक लोकप्रिय आंदोलन को कुचलने के लिए
दक्षिणपंथी सांप्रदायिक-फासीवादी शक्तियों को प्रोत्साहित करने में लगी
हुई है. यह वक्त का तकाजा है कि माकपा को अपने दशकों पुराने 'रणनीति व
कार्यनीति' में बदलाव लाने और नए सिरे से प्रमुख राष्ट्रीय क्रांतिकारी
मुद्दे तय कर नए जंग का ऐलान करना चाहिए.
प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दे;
१. बड़े इजारेदार देशी-विदेशी पूंजीपति-कॉर्पोरेट घरानों की पूँजी जब्त
करना (जिस टाटा ने बाबन (५२) मिलियन डॉलर यानि कि ३ अरब १२ सौ करोड़ रूपये
की अनुदान लागत से अमेरिका स्थित हार्वर्ड विश्वविद्यालय का नया बिज़नेस
कैंपस का निर्माण किया है उसने यही काम भारत में क्यों नहीं किया? जबकि
यही टाटा हर साल गुजरात सरकार, भारत सरकार से हजारों करोड़ रूपये की
सब्सिडी और टैक्स रिलैक्सेशन हासिल करता चला आ रहा है. अब वक्त आ गया है
कि टाटा, रिलायंस समेत सभी निजी कॉर्पोरेट घरानों की पूँजी का
राष्ट्रीयकरण किया जाय).
२. राजे-रजबाड़ों, बड़े जमींदारों तथा बड़े फार्म हाउस के लगभग २०० लाख एकड़
जमीने जब्त कर गरीब भूमिहीनों के बीच बांटना.
३. मठों-मंदिरों में जमा पचपन लाख करोड़ रूपये की सम्पत्ति जब्त कर विकास
कार्यों में लगाना.
४. ठेका-प्रथा पूरी तरह समाप्त करना तथा मानदेय/नियोजित कामगारों को
नियमित/स्थायी कर 'समान काम के लिए समान वेतन' के आधार पर न्यूनतम मजदूरी
४०००० रूपये/माह के अलावा पेंशन, बोनस की गारंटी करना.
५. कालाधन की उगाही करना. और
६. सभी क्षेत्रों में महिलाओं को पचास प्रतिशत भागीदारी देने के साथ
आबादी के अनुपात में दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़े एवं अल्पसंख्यकों को
आरक्षण देना और सभी आरक्षित सीटों पर बहाली सुनिश्चित करना.
माकपा हालाँकि सैद्यांतिकरूप से पहचान की राजनीती में विश्वास नहीं करती.
बहरहाल, भौगोलिक व सामाजिक संतुलन बनाये रखने के लिए व्यवहार में जो
विसंगतियां है, उसे दूर करने के लिए यह बेहद जरूरी है कि फैसले लेने वाले
शीर्ष संगठनात्मक समितियों में महिलाओं, दलितों, आदिवासियों,
अल्पसंख्यकों व पिछड़े सामाजिक पृष्ठभूमि से आये ईमानदार, अनुशासित, और
समर्पित जनप्रिय नेताओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाय. माकपा के
स्थापना काल १९६४ से लेकर आज तक उत्तर भारत से माकपा पोलित ब्यूरो में एक
भी सदस्य का न होना दुर्भाग्यपूर्ण है.
'विदेशी युरेशियन 'आर्य-ब्राह्मणो' भारत छोडो का नारा बुलंद करो!
पूंजीपति कभी राष्ट्रभक्त/देशभक्त हो ही नहीं सकते. अन्यथा; मजदूरों की
गाढी कमाई लूटकर स्विस बैंक में पूँजी जमा नहीं करते या ज्यादा मुनाफ़ा
कमाने की लालच में वे पूँजी को देश के बाहर अन्य देशों में नहीं ले
जाते... पूंजीपतियों की दलाल दक्षिणपंथी हमलावर मोदी सरकार दिन-रात
पूंजीपतियों की सेवा करने में जुटी हुई है. जाहिर है, इस दलाल पूंजीपति
सरकार को "विदेशी युरेशियन 'आर्य-ब्राह्मण' का अंध-समर्थन हासिल है जो
मुनाफाखोर बनिया के साथ मिलकर देश के मेहनतकश किसान-मजदूर,
दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यक-महिलाओं को शोषण, जुल्म-उत्पीड़न और
धार्मिक-जातीय उन्मादी अन्याय की चक्की में पीस देने पर उतारू है. इसके
खिलाफ चौतरफा सामाजिक आंदोलन खड़ा करना आज की सबसे बड़ी मांग है.
मोदी अपने मन की बात छोड़ और किसानों के मन की बात सुन !
जिस जमीन से अन्न उगाकर किसान करोड़ों लोगों का पेट भरते आये है उसी पर
मोदी सरकार की गिद्ध नजर क्यों है.? आजादी के बाद आधुनिक भारत के निर्माण
की आधारशिला रखने वाले नेहरू ने सोवियत संघ की मदद से "लोहा-इस्पात,
बिजली, पेट्रो-केमिकल्स, सीमेंट आदि का कारखाना लगाने के अवसर पर कहा था:
यह आधुनिक भारी उद्योग-कारखाना ही आधुनिक भारत का मंदिर है, जहां
रोजी,रोटी की गारंटी होगी. लेकिन, मोदी सरकार ने अंधविश्वास फैलाने वाले
कारखाना: कथित राम-मंदिर के नाम पर पूरे देश को सांप्रदायिक आग में
झोंका, जिसमे कम से कम दस हजार मासूम औरत-बच्चों हलाक हुए...
इन मनुवादियों को अब दो-टूक शब्दों में समझा देना होगा कि या तो वे भारत
में मिलजुल कर रहें या देश से बाहर जाएँ. विकास हममे से हर कोई चाहते है.
अरबों रूपये की परियोजना जल्द से जल्द शुरू हो, लेकिन किसानों की जमीन पर
नहीं. बल्कि, देशभर में फैले उन पांच लाख चौहत्तर हजार गढो, मठों-मंदिरों
पर जो लाखों एकड़ बेशकीमती जमीन पर खड़ा है और जिनमे पचपन लाख करोड़ की
सम्पत्ति भी अनुतप्योगी कार्यों: मसलन झूठ-फरेब, अंधविश्वास, पाखण्ड,
उंच-नीच के भेदभाव फैलाने कारखाने (जिसे मलमूत्र, कीचड़ का सीवर लाईन कहना
ज्यादा बेहतर होगा, जिसमे दकियानूसी बाभनवादी कीड़े-मकोड़े रेंगते रहते
हैं), को ध्वस्त कर उसी जगह नए उद्योग-कारखाने लगाओ! .किसानों की जमीने
छीनने के बजाय कथित राष्ट्रवादी मोदी सरकार देशहित में अमीरों के मनोरंजन
स्थल गोल्फ कोर्स और रेस कोर्स की लाखों एकड़ जमीन का अधिग्रहण क्यों नहीं
करती? बड़े-बड़े महानगरों में बड़ी-बड़े फार्म हाउस का अधिग्रहण करने से
किसने रोक रखा है?
ए. सी. प्रभाकर
तीसरी दुनिया का सामाजिक नेटवर्क्स
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