Sunday, October 11, 2015

[workingclass] फासीवाद के बारे में एक अत्‍यंत सामयिक व महत्‍वपूर्ण लेख

प्रिय साथी, 
2004 में कांग्रेस-नीत 'संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन' की अप्रत्याशित चुनावी जीत के ठीक बाद मज़दूर अख़बार "नयी समाजवादी क्रांति का उद्घोषक बिगुल" में जून 2009 से दिसम्बर 2009 के बीच छह किश्‍तों में "फासीवाद क्या है और इससे कैसे लड़ें?" शीर्षक से लेख प्रकाशित हुए थे। राहुल फाउण्‍डेशन ने इन लेख़ों को बाद में एक पुस्तिका के रूप में भी प्रकाशित किया। तब संसदीय वामपंथियों और संशोधनवादियों समेत क्रान्तिकारी वाम का भी एक हिस्सा इस बात पर जश्न मना रहा था कि भाजपा की चुनावों में भारी हार हुई थी। कई तो इसे फासीवाद की निर्णायक पराजय भी क़रार दे रहे थे! इस तरह के दावे केवल यही दिखला रहे थे कि एक मज़दूर-विरोधी राजनीतिक और सामाजिक आन्दोलन के तौर पर फासीवाद की उनकी समझदारी कितनी दरिद्र है। हमने तब भी लिखा था कि चुनावी पराजय को फासीवाद की पराजय मानना एक भारी भूल है। और सर्वहारा वर्ग के प्रतिरोध की रणनीति को बनाने के लिए ऐसी सोच विशेष तौर पर नुकसानदेह है। 2014 के लोकसभा चुनावों में फासीवादी शक्तियों की अभूतपूर्व जीत ने इस बात को सिद्ध भी किया। एक ऐसे दौर में हमने इस पुस्तिका के साथ एक पश्चलेख जोड़ा है। इसमें कुछ अहम छूटे हुए नुक्तों को जोड़ा गया है जो मोदी सरकार और फासीवाद के इस नये उभार के समकालीन सन्दर्भ में ज़रूरी महसूस हुए। हम उम्मीद करते हैं कि इससे हम इस पुस्तिका में पेश अपनी समझदारी को और विस्तार के साथ व्याख्यायित कर पाये होंगे और साथ ही उसे विस्तार दे पाये होंगे।

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